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________________ शरीर राम को मिला था और रावण को भी। राम ने संयम - तप को अपनाकर मोक्ष प्राप्त कर लिया और रावण विषय लिप्त होकर नरक चला गया । वासना में ― गाँधी जी ने "गाँधी विचार दोहन" नामक पुस्तक में लिखा है " बहुत अधिक ज्ञान की आवश्यकता नहीं है । संयम के साथ अल्पज्ञान भी मूल्यवान है ।" संयम - तप के माध्यम से ही हम अपने मन की कलुषताओं को, राग-द्वेष आदि विकारों को धोकर पवित्र कर सकते हैं। अपने मन को पवित्र करना भी संयम है । एक शिष्य ने अपने गुरु से कहा T आपके चरणों में रहते हुए मुझे 10 वर्ष हो गये, किन्तु आज भी मेरा मन बाहर ही भटकता रहता है । मैं अत्यन्त परेशान रहता हूँ, आप कुछ उपाय बताइये । गुरु ने शिष्य को शिक्षा हेतु दूसरे साधु के पास भेजा और कहा जाओ, उसकी समग्र जीवन चर्या को ध्यान से देखो । जब शिष्य ने जाकर उस साधु को देखा तो आश्चर्य चकित हो गया। क्योंकि वह साधु एक होटल का नौकर था । उसे उस साधु में कोई विशेषता नहीं दिखी । वह सामान्य व्यक्तित्त्व वाला था । किन्तु वह सरल स्वभावी था। बच्चों जैसा निर्दोष था । उसकी चर्या में अन्य कोई विशेषता न थी । जब उस शिष्य को कुछ समझ नहीं आया तो उसने साधु से उसकी चर्या के बारे में पूछा । साधु ने कहा मैं प्रातः, दोपहर एवं सांझ को अपने बर्तन मांजता हूँ। सुबह धूल जमती है तो दोपहर को मांजता हूँ, दोपहर को धूल जमती है तो शाम को मांजता हूँ, शाम को धूल जमती है तो सुबह मांजता हूँ, ताकि बर्तन स्वच्छ एवं धूल 350
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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