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________________ रहित हों। वह शिष्य उस साधु के पास से अत्यन्त निराश हाकर अपने गुरु के पास लौट आया। उसने गुरु को साधु की दैनिक चर्या तथा साधु से हुई वार्तालाप बतलाई | गुरु ने पूछा- तुमने वहाँ क्या सीखा | शिष्य ने उत्तर दिया- वहाँ सीखने जैसा कुछ था ही नहीं। क्योंकि पहली बात वह साधु नौकर है, जो मात्र तीन वक्त गन्दे बर्तनों की सफाई करता है। उससे तो मैं ही श्रेष्ठ हूँ | गुरु बोल तुम उसे समझ नहीं सके | मैंने तुम्हें वहाँ इसलिये भजा था कि जिस प्रकार वह अपने बर्तनांको मांजता है, उन्हें धोता है, निर्मल करता है, उन पर धूल जमने नहीं देता, उसी प्रकार तुम भी अपने मन को इसी प्रकार मांजो | उस पर विषय-कषायों की धूल मत जमने दो। संयम को धारण कर आत्मा के प्रक्षालन में अहर्निश लगातार लगे रहो | पापों का त्याग कर अपने जीवन को समता भाव से जीन का अभ्यास करो | संयमी व्यक्ति का मन सदा पवित्र रहता है। रामदास, शिवाजी क गुरु थे। एक बार की बात है। गर्मी के दिन थे, गुरु रामदास रास्ते से जा रहे थे। उन्हें प्यास लगी। आस-पास कहीं पानी नहीं मिला। उन्होंने एक गन्ने के खेत से गन्ना तोड़ लिया । मालिक था नहीं सोचा जब आ जायेगा तो पैसे दे देंगे | प्यास बुझाने के लिये उन्होंने आधा गन्ना ही खाया था, इतने में किसान आ गया | रामदास जी को गन्ना खाते देखकर उसे गुस्सा आ गया। जब तक रामदास जी अपनी बात कहते, उस किसान ने रामदास जी की पीठ पर गन्ने से पिटाई कर दी। रामदास जी कुछ नहीं बोले । चुपचाप गन्ने के पैसे दकर आग बढ़ गये | सारी बात जब शिवाजी तक पहुँची ता उन्हें बड़ा दुःख हुआ। उन्होंने उस किसान को दण्डित करने के लिये राज दरबार में बुलाया । किसान ने (351)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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