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उत्तम संयम
धर्म का छटवाँ लक्षण है उत्तम संयम । संयम का सीधा सा अर्थ है - दौड़ते हुये इन्द्रिय-विषयों की लगाम अपने हाथ में रखना तथा दया भाव से छह काय के जीवों की अपने द्वारा विराधना न होने देना |
जैसे सड़क पर चलने वाले हर यात्री को सड़क के नियमों का पालन करना अनिवार्य होता है, उसी प्रकार मोक्ष के मार्ग पर चलने वाले साधक को नियम-संयम का पालन करना अनिवार्य है | तीर्थंकर भगवान भी घर में रहकर मुक्ति नहीं पा सकते । वे भी संयम धारण करने के उपरान्त कर्मों की निर्जरा करके सिद्धत्व को प्राप्त करते हैं ।
अनादि काल से संसार में भटकते-भटकते आज यह दुर्लभ मनुष्य जन्म और जैन शासन मिला है, तो अब अपना कर्तव्य है कि संयम को धारण कर अपना कल्याण कर लें । जिस प्रकार प्रमाद से चिन्तामणि रत्न समुद्र में गिर जाये तो उसका प्राप्त होना दुर्लभ है, उसी प्रकार यह मनुष्य पर्याय और मोक्ष मार्ग को बताने वाला जैन-धर्म मिलना दुर्लभ है । इसलिये मोक्षमार्ग को अच्छे प्रकार से समझकर उसमें प्रमाद रहित प्रवृत्ति करना चाहिये ।
संयम सद्गति प्राप्त करने का प्रमुख साधन है । संयम की महिमा अचिन्त्य है, जो निर्विकल्प दशा को प्राप्त करने के इच्छुक हैं, उन्हें
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