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पाद प्रक्षालन के लिये अमृत को नष्ट कर दिया, लकड़ी ढोने के लिये हाथी का दुरुपयोग किया। इस नर जन्म को हमें रत्नत्रय की प्राप्ति में लगाना चाहिये, इसी में हमारा कल्याण है ।
श्री वंदक नामक मंत्री असत्य बोलने के कारण क्षणमात्र में अंधा हो गया । कनकपुर के राजा धन दत्त का श्रीवंदक मंत्री बौद्ध था । किसी दिन राजमहल की छत पर राजा और मंत्री बैठे थे, उसी समय आकाश मार्ग से दो चारण ऋद्धिधारी मुनिराज जाते हुये दिखे । राजा ने विनय से उनका आव्हान किया, जिससे वे उनकी छत पर उतरे । राजा ने उन्हें उच्च आसन पर विराजमान कर नमस्कार आदि करके उपदेश के लिये प्रार्थना की। उपदेश के बाद प्रभावित होकर श्रीनंदक ने सम्यक्त्व के साथ श्रावक के व्रत ग्रहण कर लिये । दूसरे दिन श्रीवंदक अपने बौद्ध गुरु की वंदना करने नहीं गया, तब गुरु ने उसे बुलाया। उसने वहाँ जाकर नमस्कार न करके अपने व्रत ग्रहण का सर्व समाचार सुनाया । बौद्ध गुरु ने पुनः उसे खूब समझाकर वह धर्म छुड़ा दिया और बोला कि ये लोग इन्द्रजालिया हैं, कहीं कोई साधु आकाश में चल सकते हैं?
दूसरे दिन राजसभा में राजा ने आकाशगामी मुनियों की सारी कथा सुनाई और श्री वंदक से कहा कि आपने भी जो कल आँखों से दिगम्बर मुनियों का प्रभाव देखा है सो कहिये । श्रीवंदक ने असत्य बाल दिया और कहा मैंने कुछ भी नहीं देखा है । उसी समय उसकी दोनों आँखें मुनि निन्दा और असत्य पाप के कारण फूट गईं। सभी
ने मंत्री के असत्य की निंदा की ओर जैन धर्म की प्रशंसा की। कभी भी असत्य वचन नहीं बोलना चाहिए। सभी को सदा सत्य धर्म का पालन करना चाहिए ।
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