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संयम को अंगीकार करना आवश्यक है। संयम निराकुलता का साधन है। जिस क्षण संयम आता है, उसी क्षण मानसिक शान्ति भी आ जाती है। जिस प्रकार प्राचीन सम्राट अपने राज्य की सुरक्षा के लिए किला बनात थे, ताकि पर चक्र का आक्रमण उन पर प्रभावी न हो । उसी प्रकार हमें भी आत्मा रूपी सम्राट की सुरक्षा करने क लिए संयम रूपी किले की आवश्यकता है। ताकि विषय रूपी परचक्र का आक्रमण आत्मा पर प्रभावी न हो सके |
लगभग 2000 वर्ष पहले की घटना है। आचार्य उमास्वामी महाराज चर्या के लिये गए और देखा एक दरवाजे पर लिखा था ‘दर्शन-ज्ञानचारित्राणि मोक्ष मार्गः ।' वहीं पर खड़िया पड़ी थी, उन्होंने उसके आगे सम्यक् शब्द जोड़ दिया | मोक्ष का मार्ग दर्शन, ज्ञान, चारित्र नहीं, सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र है। इस जीव ने ज्ञान, चारित्र तो अनन्तों बार धारण कर लिया, लेकिन सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र एक बार भी धारण नहीं किया ।
उस मकान का मालिक बाहर से आता है, और देखता है यह कौन जोड़ गया? मैंने तो यह शब्द नहीं लिखा था? यह सम्यक् क्या कहलाता है? दर्शन, ज्ञान, चारित्र तो समझ में आता है? लेकिन सम्यक् क्यों? वह दौड़ कर गया महाराज के पास और बोला महाराज! आप मेर लिखे हुये के आगे जो लिख आये हैं, उस शब्द का क्या आशय है? उस सम्यक् शब्द विषयक एक प्रश्न क उत्तर में उन्होंने तत्त्वार्थ सूत्र की रचना कर दी। श्री सुधासागर जी महाराज ने लिखा है-यदि इसमें से सम्यक् शब्द निकाल दिया जाय तो यह नकटी के श्रृंगार जैसा है। यदि किसी की नाक कटी हो और वह सोलह श्रृंगार कर ले, तो वह श्रृंगार उसके लिये कार्यकारी नहीं है। इसी प्रकार कोई संयम का पालन कर ले पर सम्यक् पालन न करे,
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