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यह सुनकर कबीर जी बोल -बेटी! तूने पाँच टके की पगड़ी को दस टके की बताकर झूठ क्यों बोला? बेटी बोली-पिताजी! आपकी बात सतयुग के लिये ठीक है, पर यह कलयुग है। झूठ बाले बिना काम कैसे चलेगा? यदि मैंन झूठ नहीं बोला होता तो यह पगड़ी आज भी नहीं बिकती। यह सुनकर कबीर जी ने सिर पीट लिया और बोले
सत्य गया पाताल में, झूठ रहा जग छाय |
पाँच टके की पगड़ी, सात टके में जाय || सत्य धर्म का पालन करने के लिये निर्लोभ वृत्ति की आवश्यकता है | जब श्री राम ने लंका पर विजय प्राप्त कर ली तब विभीषण ने राम से कहा कि यहाँ का राज्य आप ही स्वीकार कीजिये | राम बोले कि मेरे लिये जन्म भूमि के समक्ष स्वर्ग का राज्य भी तुच्छ है। मैं तुम्हारा राज्य स्वीकार नहीं करूँगा। मैंने तो अपने पिता के वचनों को सत्य सिद्ध करने क लिये चौदह वर्ष का बनवास स्वीकार किया था।
जब तक हम सत्य का परिपालन नहीं करेंगे तब तक अपना गृहस्थ जीवन भी पवित्र एवं श्रेष्ठ नहीं बना सकत | जो पदार्थ जैसा है उसका उसी रूप कथन करना सत्य है । आचार्य उमास्वामी महाराज न असत्य पाप का लक्षण लिखा है - असद्भिधानमनृतम् अर्थात् प्रमाद के याग स जो कुछ असत् का कथन किया जाता है, उसको अनृत या असत्य कहते हैं। इसके चार भेद हैं | जो वस्तु अपने द्रव्यादि चतुष्टय कर है, उसका अपलाप करना यह प्रथम असत्य है। जैसे देवदत्त के रहन पर भी कहना कि यहाँ पर देवदत्त नहीं है | वस्तु अपने चतुष्टय कर नहीं है। वहाँ उसका सद्भाव स्थापना द्वितीय असत्य है। जैसे
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