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जहाँ पर घट नहीं वहाँ पर कहना कि घट है | जो वस्तु अपने स्वरूप से है उसे पर रूप से कहना यह तृतीय असत्य है। जैस गौ को अश्व कहना। तथा पैशून्य, हास्य, कर्कश, असमंजस, प्रलाप तथा उत्सूत्ररूप जो वचन हैं, वह चतुर्थ असत्य है। इन चार भदों में ही सब प्रकार के असत्य आ जाते हैं। इन चार भेदों क विपरीत जो वचन हैं, वे चार प्रकार के सत्य हैं। असत्य भाषण के प्रमुख कारण दो हैं-एक अज्ञान
और दूसरा कषाय | अज्ञान के कारण मनुष्य असत्य बोलता है और कषाय के वशीभूत होकर कुछ का कुछ बोलता है। यदि अज्ञान जन्य असत्य के साथ कषाय की पुट नहीं है, तो उससे आत्मा का अहित नहीं होता, क्योंकि वहाँ वक्ता अज्ञान से विवश है। ऐसा अज्ञान जन्य असत्य वचनयोग ता आगम में बारहवें गुणस्थान तक बतलाया है | परन्तु जहाँ कषाय की पुट रहती है, वह असत्य आत्मा के लिये अहित कारक है | संसार में राजा वसु का नाम असत्य वादियों में प्रसिद्ध हा गया । उसका खास कारण यही था कि उसके द्वारा बोला गया असत्य कषाय जन्य था। पर्वत की माता के चक्र में पड़कर उसने 'अजैर्यष्टव्यम्' वाक्य का मिथ्या अर्थ किया था, इसलिये उसका तत्काल पतन हा गया । और वह दुर्गति का पात्र हुआ।
अकेले सत्य व्रत को धारण कर लेने से ही सर्वगुण प्रगट हो जाते हैं | एक घटना है -
एक सप्त व्यसनी व्यक्ति था। वह जंगल में किसी लड़की को खींच कर ले जा रहा था। उसी जंगल में एक साधुजी ध्यान कर रहे थे। लड़की के चिल्लाने से साधुजी का ध्यानभंग हो गया, वे जोर से बाले-कौन है? वह सप्तव्यसनी डर गया और लड़की को छोड़कर साधु जी के पास हाथ जोड़कर खड़ा हो गया । साधुजी बोले-कौन हो, तुम क्या कर रह थ, पाप कर रहे थे? इस पाप का फल कौन
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