________________
अपनी प्रतिज्ञा का स्मरण दिलाते हुए कहा कि मेरी प्रतिज्ञा है कि बाजार में जो भी सामान बचे उसे राजकोष से खरीद लिया जाये | मेरी इस प्रतिज्ञा को ध्यान में रखते हुए तुम्हें उस मूर्ति को खरीद लेना चाहिए । राजाज्ञा से मूर्ति खरीद ली गई और उसकी स्थापना महल में कर दी गई। प्रतिज्ञा का निर्वाह हो जाने से राजा को प्रसन्नता हुई। प्रसन्नमना राजा रात्रि में सोया। अचानक आँख खुली ता देखता है कि एक सजी-धजी महिला दरवाजे की तरफ बढ़ रही है। राजा न पूछा कि तुम कौन हा? इतनी रात में कहाँ जा रही हो । तो उसने जवाब दिया कि, राजन मैं लक्ष्मी हूँ और अब तुम्हारे महलों से जा रही हूँ | राजा ने कहा क्यों? लक्ष्मी ने जवाब दिया कि जिस घर में शनि की मूर्ति स्थापित हो जाए, वहाँ लक्ष्मी का निवास कैसे रह सकता है। इसलिये अब मैं तुम्हारे यहाँ से जा रही हूँ | राजा ने कहा ठीक है, मैंने अपने धर्म का पालन किया है, आप जाना चाहती हैं तो चली जाएं। राजा जरा भी विचलित नहीं हुआ | थोड़ी देर बाद राजा देखता है कि वहाँ से एक पुरुषाकृति चली जा रही है। आहट आते ही राजा चौकन्ना हुआ उसने पूछा तुम कौन हो? और इतनी रात गए कहाँ जा रहे हो? तो उसने जवाब दिया मैं वैभव हूँ। राजन | अब मैं तुम्हारे महल से जा रहा हूँ | राज ने पूछा क्यों जा रहे हो? वह बोला-जिस महल में लक्ष्मी का निवास न हो, वहाँ वैभव कैस रह सकता है? राजा जरा गंभीर हुआ और कहा जाना है तो जाओ। थोड़ी देर बाद देखा कि एक सुकुमार कन्या चली आ रही है। पगचाप सुनकर राजा ने पूछा तुम कौन? तो कन्या ने जवाब दिया मैं कीर्ति हूँ और अब तुम्हारे महलों से जा रही हूँ | राजा ने कहा क्यों । तो उसने कहा कि जहाँ लक्ष्मी का निवास और वैभव न हो, वहाँ कीर्ति का क्या काम? लक्ष्मी और वैभव क बिना किसकी कीर्ति फैली
(332)