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जाते-जाते कोई अन्तिम शिक्षा हम सबका देत जाइये | कनफ्यूसियस बड़े ऊँच दर्जे के दार्शनिक थे। उन्होंने अपना मुख खोला और शिष्यों से पूछा “बताओ मेरे मुँह में क्या है?" शिष्य बोले-आपके मुँह में अकली जीभ है, पर दाँत तो एक भी नहीं है। कनफ्यूसियस ने पूछा इसका क्या कारण है, बता सकते हो? सारे शिष्य एक दूसरे का मुँह ताकते रहे पर उन्हें कोई उत्तर समझ में नहीं आया। तब कनफ्यूसियस ने कहा-“देखो दांत बाद में आये और पहले चले गय | जीभ पहले आई और अभी तक बनी है। इसका सिर्फ एक ही कारण है- दाँत में कठोरता है, कड़ापन हैं इसलिये दाँत पहले चले गये | जीभ में लोच है, इसलिये जीभ आज भी बनी हुई है | यही मेरा तुम्हारे लिये अन्तिम संदेश है कि जितना बने विनम्र बनो, सरल व्यवहार करा और अपनी जिव्हा में हमेशा लचीलापन बनाये रखो । कभी भी अप्रशस्त वचनों का प्रयोग मत करो। __सदा प्रिय व सत्य वचन ही मुख से बोलो | सत्य वचन कण्ठ के आभूषण माने गये हैं। जिसके मुख से सदा सत्य निकलता है, फिर उन्हें कण्ठ में किसी आभूषण के पहनने की आवश्यकता नहीं हाती । सत्यवादी हरिशचन्द्र जैसे धीर पुरुष भले ही कठिनाईयाँ झलते रहे, किन्तु उन्होंने अपने सत्यधर्म को नहीं छोड़ा। एक बार एक राजा ने प्रतिज्ञा की कि हमारे राज्य में जो बाजार लगता है, उसमें शाम तक जो सामान न बिके उसे राजकोष से खरीद लिया जाए। राजा की इस प्रतिज्ञा का पालन बहुत समय तक होता रहा। एक दिन राजा के पास मंत्री आया, कि राजन्! बाजार में सारा समान तो बिक गया। लेकिन आज एक शनि की मूर्ति बिकने के लिए आई है, जिसे खरीदने को कोई तैयार नहीं | सारा सामान बिक गया, मगर शनि की मूर्ति रखे हुए दुकानदार अब भी बैठा है, क्या किया जाए? राजा ने
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