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बतीसी बाहर आ गई ।
रहिमन जिव्हा बाबरी, कह गई सुरग पताल । आप तो कह भीतर गई, जूती खात कपाल । ।
इसलिये, आचार्यों ने कहा है कि यदि तुम्हें वाणी की शक्ति प्राप्त हुई है, तो उसमें लोच रखो और सदा सत्य व प्रिय वचन ही बोलो । जो व्यक्ति जितना अधिक मधुर संभाषी होगा, वह व्यक्ति उतना ही अधिक आदरणीय प्रतिष्ठित माना जाता है । नीतिकारों ने कहा है
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प्रिय वाक्य प्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः । तस्मात् तदैव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता । |
अरे भइया! जब तुम्हारे मीठे बोलने से सब संतुष्ट होते हैं तो वही बोलो न वचनों में कौन-सी दरिद्रता है । क्या तुम्हारे बोलने पर पैसा लगता है? क्या तुम्हारे पास शब्द सम्पदा की कमी है? अरे शब्द का तो अपूर्व भंडार है तुम्हारे अन्दर उस भंडार का प्रयाग करो। अच्छे शब्दों का प्रयोग करो, बुरे शब्द अपने मुख से कभी न निकालो। आपने कभी विचार किया कि दाँत कड़े हैं और जीभ कोमल है । इसका अर्थ क्या है ?
कुदरत को नापसंद है सख्ती जुबान में | इसलिये नहीं दी है हड्डी जुबान में ।।
जुबान में हड्डी नहीं है । इसका अर्थ है अपनी वाणी में लोच रखो, जुबान ज्यादा सख्त मत करो, सख्त करोगे तो सब गड़बड़ हो जायेगा। चीन का दार्शनिक कनफ्यूसियस जब मरणासन्न था तो उसके शिष्यगण उसे घेरे हुये थे । उन्होंने कहा कि, गुरुदेव ! आप
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