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पूछा कि रात को तूने कहीं से कुछ चोरी की थी?
चोर ने कहा कि हाँ, मैंने राजा की घुड़साल से घोड़ा चुराया
था ।
नौकरों ने पूछा कि घोड़ा किस रंग का है और कहाँ है ? चोर ने कहा घोड़े का रंग सफेद है और वह उस पेड़ हुआ है।
बंधा
देवों ने चोर के सत्य की परीक्षा लेने के लिये घोड़े का रंग लाल कर दिया। राज कर्मचारियों ने जब वह घोड़ा देखा तो वह लाल था । उन्होंने चोर से पूछा कि भाई यह घोड़ा तो लाल है ।
चोर ने दृढता के साथ उत्तर दिया कि मैं तो सफेद घोड़ा ही चुराकर लाया हूँ।
देवों ने उस चोर के सत्यव्रत से प्रसन्न होकर चोर के ऊपर फूल बरसाये और घोड़े का रंग फिर सफेद कर दिया। यह चमत्कार देखकर राजा के नौकरों को आश्चर्य हुआ । वे चोर को अपने साथ ले जाकर राजा के पास पहुँचे ।
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राजा ने चोर से सब समाचार पूछे। चोर ने मुनि महाराज से सत्य व्रत लेने से लेकर अब तक की सब बातें सच - सच बता दी ।
राजा चोर की सत्यवादिता पर बहुत प्रसन्न हुआ और पारितोषक में उसको बहुत सा धन देकर उससे चोरी करना छुड़ा दिया। इस तरह एक झूठ बोलना छोड़ देने से चोर का इतना राज सम्मान हुआ और उसका चोरी करना भी छूट गया ।
बहुत से लोग अपने छोटे बच्चों के साथ झूठ बोलकर अपना मन बहलाया करते हैं, परन्तु बच्चों का हृदय कोमल, स्वच्छ, निर्मल होता
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