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दिखाया उन्होंने खांडप्रस्थ को परिवर्तित कर दिया और इन्द्रप्रस्थ बना दिया । इन्द्र का अर्थ होता हैं माया, प्रस्थ यानि स्थान । उस स्थान को मायावी बना दिया और दुर्योधन को भी इन्द्रप्रस्थ महल के उद्घाटन समारोह में बुलाया ।
नांगल (गृह प्रवेश) करने की परंपरा आज की नहीं बहुत पुरानी है | मकान बनने के बाद सारे रिश्तेदारों को बुलाकर नांगल करवाया जाता है। जिसमें धार्मिक अनुष्ठान किया जाता था । पाडंवों ने भी खाण्डप्रस्थ को इन्द्रप्रस्थ बनाकर नांगल किया । उसमें दुर्याधन भी आया । ओ हो ! दुर्योधन तो देखते ही दंग रह गया । कहीं पर जाता सोचता कि यहाँ जल होगा वह अपना चूड़ीदार पैजामा ऊपर को खींचता है कि गीला न हो जाये, लेकिन वहाँ जाकर देखता है कि वहाँ तो जमीन है और जहाँ जमीन देखने में आती है वहाँ पर स्वीमिंग पूल जैसा जलकुण्ड था, अतः धड़ाम से गिर जाता है । यही तो संसार है। संसार में सारा का सारा माया का जल भरा है । जिसे हम सत्य मानते हैं, वह असत्य है और जिसे हम असत्य मानते हैं, वह सत्य है । पारमार्थिक सुख ही सत्य है । जिस-जिस में हमें दुःख मिला, उस को हमने सत्य कहा और दूसरे को भी वही मार्ग बताया । जिस गृहस्थी के जाल में मकड़ी का जाल बन रहा है, उसमें क्या 24 घण्टे में एक समय लिए भी निराकुल परिणाम कर पाए ? नहीं । फिर भी हम दूसरों को उसी में फँसाने का उपदेश देते हैं ।
द्रोपदी के दो शब्दों ने कमाल कर दिया - अन्धे के पुत्र अन्धे ही होते है । हँसी तो होगी ही और जब तुम्हारी कोई हँसी करेगा तो क्रोध आयेगा |
कठिन वचन मत बोल । हँसी-हँसी में भी अपने मित्र का कठिन
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