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दुनिया में झगड़े हो रहे हैं तो जिव्हा के कारण से यह जिव्हा कुछ बोलकर अंदर चली जाती है, इधर तलवारें खिंच जाती हैं। हजारों साल पूर्व जिव्हा ने कितना बड़ा अत्याचार किया था? इस जिव्हा ने दो शब्द बोले थे, वे भी कौतूहलवश | लेकिन ये दो शब्द बोलने का परिणाम यह निकला कि यह नीति चरितार्थ हो गई कि गोली चूक जाए, लेकिन बोली नहीं चूकती। गोली का घाव भर जाता है, लेकिन बाली का घाव जन्म-जन्म तक बना रहता है । पत्थर की चोट के घाव सूख जायेंगे, डंडे के घाव सूख जायेंगे, इन का आपरेशन हो जायेगा, लेकिन कभी किसी के प्रति बोली के घाव पड़ जायें, तो उसके हृदय में जन्म - जन्म तक वह घाव नहीं सूखता । रिसता रहता है, हरा बना रहता है । जन्म-जन्म तक हरा बना रहता है । गोली तो एक ही जीव को मारती है, लेकिन बोली न जाने कितन जीवों का संहार कर देती है । एक गोली एक ही जीव को मार सकती है, दो जीवों को मारने की क्षमता नहीं, लेकिन बोली में इतनी क्षमता है कि सार वंश का विनाश कर सकती है ।
द्रोपदी के मुख से मजाक में दो शब्द निकल गये कि अन्धे के पुत्र अन्धे ही होते हैं । इतना ही तो कहा था। बेचारी द्रोपदी दुर्योधन की भाभी थी । उसे देवर से मजाक करने का अधिकार समाज ने दिया है। एक वचन बोल दिया था कि अंधे के पुत्र अन्धे होते हैं कब बोला था यह वचन ? पांडवों के लिये कौरवों ने राज दिया था खांडप्रस्थ का | इसका अर्थ है खण्डहर का स्थान | यह दे दिया था । धृतराष्ट्र के कहने पर कुछ तो देना पड़ेगा। लेकिन पांडव तो कर्मठ जीव थे, अकर्मण्य जीव नहीं थे । भाग्य पर भरोसा नहीं रखते थे । अपने बाहुबल पर भरोसा रखते थे । पांडव तो जैन थे, क्षत्रिय पुत्र थे । वे तो कहते थे बाहुबल हम सब कुछ कर लेंगे, और कर
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