________________
मुश्किल से उसके माथे पर वार कर दिया । शेर का माथा फट गया | खून निकलने लगा । शेर ने किसान से कहा जाओ लौट जाओ । बस इतना ध्यान रखना कि दस-पन्द्रह दिन बाद आकर मुझे देख जाना | दस-पन्द्रह दिन बाद बहुत डरते-डरते हाथ जोड़े किसान शेर के सामने पहुँचा । शेर ने अपना सिर आगे करके कहा- देखो । सिर के घाव का क्या हुआ ?
घाव तो मिट गया था । किसान ने देखकर कहा मिट गया ।
—
ये घाव तो
लेकिन एक घाव अभी मेरे मन में बहुत गहरा है, शेर ने कहा ।
क्यों क्या हुआ? किसान ने पूछा । मैं तुम्हारे घर पहुँचा था । मैं तो बहुत चुपचाप खड़ा हो गया था । वहाँ पर लोग मुझसे डर रहे थे । शेर बताने लगा सारी बात । तब तुम्हारी (पत्नी) ने कहा कि डरने की कोई बात नहीं ये तो शेर नहीं गधा है, गधा । ये बात आज भी तकलीफ पहुँचाती है ।
शरीर पर पड़ा घाव तो मिट गया, पर मन को लगा हुआ घाव नहीं मिटा । हम वही बोलें- जो सत्य हो, प्रिय हो ।
आचार्यों ने लिखा है- 'सत्यंवद, प्रियंवद', सच बोलें, प्रिय बोलें । अप्रिय और असत्य तो बोलो ही मत । प्रिय बोलो और सच बोलो । यदि झूठ भी प्रिय हो, तो मत बोलो और सच भी अप्रिय हो तो मत बोलो। ये दो-दो कन्डीशंस (शर्तें) रखी हैं ।
एक राजा साहब को अपना चित्र बनवाना था । इसके लिए बहुत सारे कलाकार बुलवाये । राजा साहब का चित्र तो सुन्दर ही बनना चाहिये । पर राजा साहब के साथ मुश्किल ये थी कि उनकी एक आँख नहीं थी । अब राजा साहब का सुन्दर चित्र बनाना है। अगर
306