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सकती । जिसे मृत्यु छुड़ा ले वह न शाश्वत है, न सुख प्रदाता है | सिकन्दर ने सन्त की बात नहीं मानी। परिणाम यह निकला कि वह अधूरे में ही वापस लौट आया और जब मृत्यु निकट आयी तो लोगों से कह दिया कि जब मेरी अर्थी निकाली जाये तो सारी सम्पदा साथ हो, पर मेरे दोनों खाली हाथ कफन से बाहर हां, ताकि लोग समझ सकें कि यह जड़ सम्पदा किसी के भी साथ जाने वाली नहीं है | व्यक्ति खाली हाथ ही जाता है।
सिकन्दर शहनशाह जा रहा, सभी हाली हवाली थे ।
सभी थी संग में दौलत, मगर दो हाथ खाली थे ।। हम सब कुछ जानते हुये भी सांसारिक प्रलोभनों में पड़कर अपनी इच्छाओं को पूर्ण करने में ही इस दुर्लभ मनुष्य पर्याय को समाप्त कर देते हैं। पर ध्यान रखना ये इच्छायं/ अभिलाषायें तो कभी पूर्ण नहीं होतीं। श्मशान में कितने ही मुर्दे ल जाओ, उसका पेट नहीं भरता, अग्नि में कितना ही ईंधन डालो, वह तृप्त नहीं होती, सागर में कितनी भी नदियाँ मिल जावें वह तृप्त नहीं हाता, इसी प्रकार तीन लोक की सम्पत्ति मिलने पर भी मनुष्य की इच्छायें पूर्ण नहीं हो सकतीं । ये इच्छायें ता संसार में भटकाने क लिये घटी-यंत्रवत हैं। एक की पूर्ति करो, दूसरी तैयार | दूसरी की पूर्ति करो, तीसरी तैयार | अनन्त काल स इच्छाएं चली आ रही हैं | आकाश का अंत भले हो जावे पर इच्छाओं का अन्त नहीं होता ।
एक होकर, दस होते, दस होकर सौ की इच्छा है। सौ होकर भी संतोष नहीं, अब सहस हाय तो अच्छा है। यों ही इच्छा करते-करते, वह लाखों की हद पर पहुँचा है, तो भी इच्छा पूरी नहीं होती, यह ऐसी डॉयन इच्छा है।
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