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व्याकुलता का भण्डार है, शोक का जन्मदाता है, कलह का स्थान है | संसार में मनुष्य लोभ के कारण अनेक पाप करता है | इसके वशीभूत इंसान को तृष्णा सदा सताती है | इसलिए उसकी इच्छा बड़ते-बड़ते सिकन्दर के समान विश्व विजय तक की हो जाती है।
सिकन्दर विश्व विजय की आकांक्षा से विशाल सेना लकर जा रहा था। रास्ते में उसकी एक सन्त से मुलाकात हो गई। सिकन्दर उन सन्त से कहने लगा "तुम मेरे साथ यूनान चलो'| सन्त बाल-सिकन्दर! तुम इतनी विशाल सेना लेकर कहाँ जा रहे हो । सिकन्दर बड़े गर्व से बोला-'विश्व विजय करने | सन्त ने कहा-'तुम विश्व विजय करके क्या करोगे ।' सिकन्दर ने कहा-' उसके बाद मैं शान्ति से बैटूंगा।' सन्त ने कहा-अच्छा तुम विश्व विजय करके शान्ति स बैठागे? तो अभी से क्यों नहीं बैठ जाते? शान्ति पाने के लिए इतनी मुसीबतें, परेशानी उठाने की क्या आवश्यकता है? युद्ध को विराम दो और बैठ जाओ शान्ति से | सिकन्दर ने कहा-बिना विश्व को जीते शान्ति नहीं महात्मन् | तभी सन्त ने अपनी कुटिया में बैठे कुत्ते को आवाज दी-वह वहाँ आया और पूँछ हिलाकर शान्ति से बैठ गया । सन्त ने कहा-सिकन्दर क्या इस कुत्ते ने विश्व विजय की? "नहीं की।' देखो फिर यह कितनी शान्ति से बैठा है | अरे सिकन्दर! शान्ति को पाने के लिए विश्व विजय की आवश्यकता नहीं-तृष्णा पर विजय पाने की आवश्यकता है। शान्ति परपदार्थों से सम्बन्ध हटाने में है। अरे सिकन्दर! तू कितना भी धन का अम्बार लगा ले, छ: खण्ड का स्वामी भी तू हो जा, पर आत्मा की शान्ति तुम्हें नहीं मिल सकती । शान्ति पदार्थ में नहीं, परमार्थ में है | सुख का वास्तविक अक्षय कोश आत्मा में विद्यमान है। यह सम्पदा-सम्पदा नहीं, आपदा और विपदा है। सम्पदा तो वह है जिसे मृत्यु छुड़ा नहीं
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