________________
भील की बात सुनकर सेठ खूब हँसा और बोला -तुमने मुझे जो पत्थर बेचे थे, उनमें से एक पत्थर में ही यह अट्टालिका बन गई, शेष सुरक्षित रखे हैं। यह सुनकर भील बहुत पछताया। __ उसी प्रकार हम मनुष्य पर्याय के अनमोल क्षणों को लोभ में पड़कर व्यर्थ बरबाद कर देते हैं और बाद में पछताते हैं। लाभ कषाय एक एसी नागिन है जो अनन्त भवों से हमारे शुद्ध चैतन्य प्रभु को संसार में रोके हुये है। हमारी आत्मा ठीक वैसी ही शुद्ध है, जैसी परमात्मा की, पर हमारी आत्मा के साथ राग-द्वष आदि विकारी भाव लगे हुये हैं, जो हमको बार-बार संसार-समुद्र में डुबा रहे हैं |
हमारी यह मनुष्य देह धर्म करने का दुर्लभ साधन है। पर हम पर-पदार्थों के लोभ में पड़कर हीरों से कौए उड़ाने का काम कर रहे हैं। एसी ही देह महावीर भगवान को मिली थी, राम को मिली थी, सभी तीर्थंकरों को मिली थी, किन्तु उन्होंने हीरों से कौए उड़ाने की भूल नहीं की। इस दह को उन्होंने धर्म की साधना में लगाया और मुक्त हो गये | जो परपदार्थों के लोभ में पड़े रहत हैं, वे जैसे आते हैं, वैसे ही वापिस चले जाते हैं | जब जीव पीड़ा, दुःख और वेदना सहता है, तब उसके विचार मुनि बनने के हो जाते हैं। परन्तु जब सुख क साधन मिलते हैं, तो वह फिर भटक जाता है।
संसार सरविलोभो लोभः शिवपथानलः |
सर्व दुःख खार्निलोभो लोभो व्यसन मन्दिरम् ।। लोभ संसार का मार्ग है, लोभ माक्ष मार्ग को भस्म करने के लिए अग्नि है | लाभ समस्त दुःखां की खान है और लोभ व्यसनों, कष्टां का मन्दिर है | यह लोभ समताभाव का शत्रु है, अधैर्य का मित्र है, समस्त आपत्तियों का स्थान है, खोटे ध्यान का क्रीड़ा वन है,
(284)