________________
लोगों ने हड़ताल कर दी कि हमारे वेतन का विकास होना चाहिए | माँग पूरी कर दी गई, लेकिन सदासुख दास जी ने माँग नहीं की थी, तो माँग के अनुसार जब इनके पास ज्यादा वेतन आया, तब उन्होंने कहा- ज्यादा क्यों दिया, कोई भूल तो नहीं हो गई? इतने ही हमारे होते हैं । 'नहीं-नहीं, सभी के वेतन में वृद्धि हो गई है। तब वे बोले- मुझे आवश्यकता ही नहीं है । 'क्यों ? क्या बात हो गयी? सभी ने लिया है तो आपको भी लेना चाहिये । पर सदासुख दास जी ने जब ज्यादा वेतन लेने से मना कर दिया, तो मालिक कहता है - ऐसा कौन - सा व्यक्ति है, जो हड़ताल में शामिल नहीं हुआ। जाकर मेरा कह देना, वह ले लेगा । सेवक ने कहा- भैया! ले लीजिए, मालिक ने कहा है। 'नहीं, मैं नहीं ले सकता। मैं उतनी ही ड्यूटी करता हूँ जितनी पहले करता था ।' अब मालिक ने उन्हें बुलाया और कहा कि मेरे कहने से ले लो । तब भी सदासुख जी ने कहा- मुझे नहीं चाहिए । 'फिर क्या चाहते हैं आप? - मालिक ने पूछा।' उन्होंने कहा कि मेरा काम आठ घण्टे की जगह चार घण्टे कर दिया जाये और मेरा वेतन आधा कर दिया जाय, जिससे मैं शेष जीवन का अधिक-से-अधिक समय जिनवाणी की सेवा में लगा सकूँ। ऐसा ही किया गया । मालिक बोला- हम धन्य हैं, जो हमारे यहाँ इस प्रकार के व्यक्ति हैं ।
बनारसीदास जी का जीवन देख लो। सिर्फ एक घंटे की दुकान खोलते थे, इससे अधिक नहीं। एक बार उनके यहाँ चार चोर चोरी करने गये उन्होंने सामान बाँध लिया । बनारसीदास जी लेटे-लेटे देखते रहे । तीन चोरों को तो उन लोगों ने आपस में गठरी उठवा दी, पर चौथे चोर से गठरी नहीं उठ रही थी, तो स्वयं बनारसीदास जी ने उसे गठरी उठवा दी। जब वे चोर घर पहुँचे तो आपस में कहने लगे कि इस चौथे चोर को मकान मालिक ने गठरी उठवाई,
280