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________________ भक्ति का फल है | और कराड़ भक्ति के समान एक क्षमा का फल है | अर्थात् क्षमा की अचिन्त्य महिमा है। यदि हमसे कोई गलती हो जाये तो तुरन्त सामने वाले स क्षमा माँग लेना चाहिये । अन्यथा एक गलती की छोटी-सी चिनगारी, महाविनाश का कारण बन सकती है। महाभारत का विनाशकारी युद्ध गलती की अस्वीकृति का ही दुष्परिणाम है। द्रोपदी न मर्म भेदक शब्द 'अन्धे के अन्धे ही पैदा होते हैं। इतना वाक्य कहकर दुर्योधन का अपमान किया था, मजाक उड़ाया था। इसी व्यंग का परिणाम इतना बुरा निकला कि दुर्योधन ने भी भरी सभा में द्रोपदी का नग्न कर अपमानित करने का प्रयास किया। छोटी-सी गलती ने रक्त की नदियाँ बहा दी। यदि द्रोपदी उसी समय इस कटु शब्द की क्षमा माँग लेती ता यह नौबत नहीं आती। रामायण का युद्ध भी गलती की अस्वीकृति का ही परिणाम है। रावण ने सीता को चुराकर बड़ी भारी गलती की। सभी ने समझाया, इस गलती की क्षमा माँग कर सीता श्री रामचन्द्र जी को वापस सौंप दो। परन्तु अहंकारी व्यक्ति गलती मानने में अपना अपमान समझता है। रावण नहीं माना और एक गलती की अस्वीकृति ने महीनों युद्ध कराया। जिसमें हजारों व्यक्ति मरे, रावण का ताज, सिंहासन, लंका और चक्र सभी पड़े रह गय, महाविनाश का ताण्डव दृश्य उपस्थित हो गया। क्राध विनाश का कारण है, जबकि क्षमा विनाश की जड़ का विनाशक है | क्षमा वह साबुन है जो हमारे मन के मैल का धो डालने में सक्षम है | यदि क्रोध के दुष्परिणामां से बचना चाहते हो तो क्रोध को छोड़कर, सदा क्षमा धर्म का पालन करो | क्षमा धर्म औषधि कहा, क्रोध जहर है भ्रात, क्राध से मानव का हुआ, कई जन्मों में घात, (14)
SR No.009438
Book TitleRatnatraya Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages802
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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