________________
मार्दव आदि दशलक्षण धर्मरूप परिणमन है। धर्म का प्रथम लक्षण है-उत्तम क्षमा | कषायें इस जीव को बरबाद कर देती हैं। क्रोध कषाय न जगे, क्षमा परिणाम बने, तो शान्ति है | क्रोध में बुद्धि खराब हो जाती है। क्रोध में धीरता, गम्भीरता, विवेक, उदारता आदि सब गुण जल जाते हैं। स्वयं दुःखी होते हैं। जिस पर क्रोध करते हैं उससे संबंध क्या? अरे! वह जीव भी तो अनेक भवां में कुटुम्बी हुआ है, मित्र हुआ है | आज अपनी कषाय के आवेश में आकर उसको शत्रु माना जा रहा है। क्रोध में जीव को हानि ही तो है, लाभ कुछ नहीं। क्रोध का अभाव होन से जो क्षमा भाव प्रकट हाता है, वही शरण है। क्षमा आत्मा का स्वभाव है और क्रोध आत्मा का विभाव | क्षमा से शांति और क्रोध से अशांति क परिणाम निकलत हैं। जगत में जो कुछ भी बुरा नजर आता है, वह सब क्रोधादि विकारों का ही परिणाम है। "क्रोधोदयाद भवति कस्य न कार्य हानिः" । क्राध के उदय में किसकी कार्य हानि नहीं होती, अर्थात् सभी की हानि होती है। यदि जीवन में सुखी होना चाहते हो ता क्रोध को छोड़कर क्षमा धर्म को धारण करो।
संस्कृत में 'क्ष' शब्द दा अक्षरों को मिलाकर बना है- क श | यहाँ 'क' कहता है कषायों का 'श' कहता है शमन करोगे तभी क्षमा धर्म प्रगट होगा और आत्मा के दिव्य स्वरूप का दर्शन हागा। आचार्यों ने कहा है
कोटि पूजा समं स्तोत्रं, कोटि स्तोत्र समं जपः |
कोटि जप संम भक्ति, कोटि भक्ति समं क्षमः || करोड़ पूजा के समान एक स्तात्र का फल है, करोड़ स्तोत्र के समान एक जाप का फल है, करोड़ जाप क समान एक निश्छल
(13