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उससे जितना माँगो, उसका दो गुना मिलता है।
दो गुना मिलता है। मेरे पास तो जो है, उससे जितना माँगो उतना ही मिलता है।
ऐसा करें, बदल लें आपस में? हाँ-हाँ ऐसा ही करें | पड़ासी ने कहा ।
बस हो गया काम | बदल लिया और दुगुने वाला ले लिया। मन में खुश। सबेरे उठे, जल्दी-जल्दी नहाया-धोया, और फिर शंख फूंका। कहा-एक लाख रुपये दो | शंख में से आवाज आई - एक लाख क्यों? दो लो न दो | लेकिन आया एक भी नहीं।
अरे! पुरान में तो जितना माँगो उतना मिल जाता था, पर इसमें से केवल आवाज आई कि एक क्यों, दो ला न दो, पर आया कुछ नहीं। तो उसने कहा-तुम देते क्यों नहीं? दा लाख दो ।
शंख में से फिर आवाज आई-दो क्यों? चार लो न चार |
अब बात समझ में आ गई, जितना माँगते चले जाते हैं आश्वासन मिलता है उससे दुगुने का पर हाथ में कुछ भी नहीं आता |
संसार में हमारी जितनी पाने की आकांक्षा है वह सिर्फ आश्वासन देती है, मिलता-जुलता कुछ नहीं है | जो हमने पाया है अगर हम उसमें सन्तोष रख लें तो संसार में फिर ऐसा कुछ नहीं है जो पाने को शेष रह जाय | पात काहे के लिए हैं? आत्म संतोष के लिये | पर आत्म संतोष नहीं मिला, और दुनिया भर की सारी चीजें मिल गई।
टॉलस्टॉय न एक कहानी लिखी है, बहुत प्रसिद्ध है-हाऊ मच लैण्ड डज ए मैन रिक्वायर? एक व्यक्ति को किसी ने वरदान दिया कि तुम सुबह सूरज उगने से लेकर अस्त हाने तक जितनी दूरी तय
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