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तो लंगोटी है | कोट मैं तुम्हें कहाँ से दूँ? तुम चाहो तो मेरी लंगोटी ले सकते हो। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कि इनके पास कुछ भी नहीं है, फिर भी अपने आपको सुखी कह रहे हैं। सो पूछ बैठा-आखिर सुखी होने का राज क्या है? फकीर बोला सुखी वह नहीं, जिसके पास अपार धन-सम्पदा और बाह्य साधन हो । सुखी केवल वही हो सकता है, जा हर हाल में मस्त और संतुष्ट रहकर जीवन जीने की कला जानता हो।
जिसके मन में अधिकाधिक पाने की चाह होती है, उस व्यक्ति का जीवन काँटों से भरा होता है, उस कभी सुख नहीं मिल सकता। सुख पाने के लिये संताष बहुत जरूरी है।
एक कहावत है - 'संतोषी सदा सुखी।' जो संतोषी है, वह हमेशा सुखी है और जो असंतोषी है, वह हमशा दुःखी है। 'जहाँ चाह है वहाँ ही दुःख है। शहंशाह तो वे हैं, जिनकी चाह खत्म हो गई।
चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह ।
जिनको कुछ न चाहिये, वे शाहन क शाह ।। जिसने लोभ को जीत लिया उसी के शौच धर्म होता है। लोभ को ही पाप का बाप कहा जाता है । 'लाभ पापस्य कारणम्' | लाभ ही पाप का कारण है।
लोभ मूलानि पापानि, रस मूलानि व्याध्वः ।
स्नह मूलानि शोकानि, त्रीणी त्यक्त्वा सुखीभवेत ।। उक्त दाहे में समस्त दुराचारों के लिये लोभ का ही उत्तरदायी ठहराया है। लोभी व्यक्ति का मन कभी शान्त नहीं रहता |
एक बार एक व्यक्ति महाराज क पास आया और बोला-महाराज जी! आप मुझे ऐसा आशीर्वाद दे दीजिये जिससे मेरी जिन्दगी बन
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