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तभी उसने देखा कि पिता के सामने बेटा नशे में धुत्त होकर आ रहा है । पिता ने कहा कि मुझे तुम्हारा नशा करना अच्छा नहीं लगता । बेटे ने बड़ी बेरुखी से कहा कि ये मेरी पर्सनल लाइफ है । इसमें आपको दखल देने का कोई अधिकार नहीं है। मेरी जिन्दगी मैं जैसे चाहूँ जिऊँ । बेटे के इस उपेक्षापूर्ण व्यवहार से पिता का मन बड़ा आहत हो गया । जिज्ञासु भी दुःखी हो गया ।
आगे चलकर वह एक व्यवसायी के पास पहुँचा । व्यवसायी अपने काम में बड़ा व्यस्त था । जिज्ञासु देख रहा था कि लेन-देन के काम
बाला
दुकान चलती है फिर
• उसे पल भर की भी फुरसत नहीं है । बहुत अच्छी दुकान चल रही है । उसने सोचा यह आदमी सुखी होगा । जिज्ञासु ने कहा- भाई! तुम मुझे अपना कोट दे दो, तुम बहुत सुखी मालूम पड़ते हो । व्यवसायी ने कहा- भाई ! कोट तो तुम ले जाओ, पर मैं सुखी नहीं हूँ । जिज्ञासु तुम्हें क्या दुःख है ? इतनी बढ़िया तुमसे ज्यादा सुखी कौन होगा? व्यवसायी बोला यही तो मेर दुःख का कारण है । मेरी दुकान इतनी अधिक चलती है कि मुझे सोने तक की फुर्सत नहीं । देर रात तक मुझे नींद नहीं आती, नींद की गोलियाँ खाकर रात गुजारता हूँ । दिन में भी चैन नहीं मिलता। ज्यादा क्या कहूँ, वक्त पर खाना भी नहीं खा सकता। मैं बहुत दुःखी हूँ । मुझसे बड़ा दुःखी तो संसार में कोई नहीं मिलेगा । मैं इस दुःख मुक्त होना चाहता हूँ।
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यहाँ से भी निराशा मिली। वह आगे बढ़ा तो एक पेड़ के नीचे अल्हड़ फकीर बैठा हुआ था । फकीर से उसने कहा कि तुम तो बड़े सुखी मालूम पड़ते हो? फकीर ने अपने मस्ती भरे अंदाज में कहा- हाँ,
बहुत सुखी हूँ | तो उसने कहा कि तो फिर आप अपना कोट मुझे दे दीजिये । फकीर ने कहा कि भाई ! कोट की क्या बात ? मेरे पास
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