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लीजिये | आज ऐसे ऐसे देश भक्त हैं, जो दौलत लेकर पूरे दश को बेचने को तैयार हैं। आज व्यापारी मिलावट कर रहा है। अधिकारी अपनी कुर्सी पर बैठा है पर बिना रिश्वत के कोई काम नहीं कर रहा है। डाक्टर कोई आपरेशन करता है तो पहले पैसे की बात करता है। न्याय देने के लिये जो न्यायालय की कुर्सी पर बैठा है, उसने भी आज पैसा लेकर न्याय को बचना शुरू कर दिया है। पर ध्यान रखना, यह अन्याय और अनीति ही तिर्यंचादि दुर्गतियों में ले जाने वाली है। यदि तियंच गति के दुःखों स बचना हो तो चाह आप दुकान में हों, दफ्तर में हों, कहीं भी हों, आपका धर्म आपके साथ होना चाहिये | धर्म का अर्थ है नीति और सदाचार | धन दौलत के मोह में यदि व्यक्ति कोई अनैतिक आचरण करता है, तो कभी-कभी उसे इतना पश्चात्ताप करना पड़ता है कि जीवन पर्यन्त उसका प्रायश्चित्त करने के बाद भी वह पूरा नहीं कर पाता। एक सत्य घटना है
एक पुलिस इन्स्पेक्टर का बेटा था, स्कूल पढ़ने जाता था। वह रोज सुबह 10 बजे जाता, 5 बजे लौटकर आ जाता | आज काफी देर हो गई, वह लौटकर नहीं आया। माँ को बड़ी चिन्ता हा रही थी। इधर पुलिस इन्स्पेक्टर को फोन पर सूचना मिली कि अनियंत्रित वेग से चलता हुआ एक ट्रक किसी स्कूली बच्चे को कुचलकर भाग गया है | जैस ही सूचना मिली, वह घटना स्थल पर जाने की जगह ट्रक का पीछा करने क लिये दौड़ा | ट्रक ड्राइवर ने ट्रक रोका और 500 रु. देकर चलता बना | अब वह निश्चिन्त हो गया। उसे घटना स्थल पर पहुँचने की कोई चिन्ता नहीं हुई, 500 रुपये ले कर घर आया और पत्नी को थमाते हुये बोला - देख, आज की यह कमाई स्वीकार कर | नोटों को देखकर पत्नी की आँखं चमक उठीं, पर उसने कहा कि आज अपना बेटा अभी तक स्कूल से नहीं लौटा, क्या बात हो
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