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रास्ते में एक बुढ़िया मिली। दोनों ने कहा, बुढ़िया माँ! रामराम | तो बुढ़िया ने आशीर्वाद दिया, खुश रहो बेटा | उनमें से एक ने पूछाबुढ़िया माँ, तुमने हम दोनों में स किसे आशीर्वाद दिया? तो बुढ़िया माँ कहती है कि तुम दोनों में जो अधिक बेबकूफ है, उसे हमने आशीर्वाद दिया। तो दोनों ने बताया कि देखो बुढ़िया माँ हम अधिक बेवकूफ हैं, सुनो । एक ने बताया कि हमारी दो स्त्रियाँ हैं। एक बार हम ऊपर से नीचे उतरने लगे तो एक ने पैर पकड़कर नीचे को खींचा, दूसरी ने ऊपर का खींचा। एक कहे कि ऊपर मरे कमरे में सोओ, दूसरी कहे कि नीचे मेरे कमरे में सोआ, तो इस खींचातानी में मेरा पैर टूट गया। सो देखो बुढ़िया माँ! मैं कितना बवकूफ हूँ? दूसरे ने बताया-बुढ़िया माँ! मेरी भी दो स्त्रियाँ हैं | एक बार रात को मैं दोनों क बीच में लेटा था। मेरी दानों भुजाओं पर दोनों के सर थे | एक चूहा चिराग में से जलती हुई बत्ती लेकर भागा तो वह मरी आँख में पड़ गयी। अब मैं न सोचा कि अगर मैं दाहिना हाथ उठाकर बत्ती हटाऊँ तो दाहिनी ओर पड़ी हुई स्त्री को कष्ट होगा और अगर बाँया हाथ उठाता हूँ तो बाँयी ओर पड़ी हुई स्त्री का कष्ट होगा, सो मैंन हाथ भी नहीं उठाया, देखो इसी से मेरी यह आँख फूट गयी। तो बुढ़िया माँ! मैं कितना बेवकूफ हूँ? बुढ़िया माँ बोली-बटा, मैंने तुम दोनों को अशीर्वाद दिया, झगड़ा न करो । यहाँ भी हम आप मूढ़ों की हाड़ मच रही है। हम सबसे अव्वल दर्जे के मोही हैं, हम सबसे अव्वल दर्जे के व्यामोही हैं। किसी परवस्तु की आशा मे रात-दिन उसका ही ध्यान बनाय रहना, यह मूढ़ता ही तो है।
ये जीव माह में तो मस्त हो रहे हैं, राग-द्वेष माह की घटनाओं के लिये ता तन, मन, धन, वचन सब कुछ लगा रहे हैं। पर एक सही मायने में आत्महित में भाव से धर्म की ओर नहीं लगते हैं | धर्म से सुख होता है और पाप से दुःख होता है। यह बात सर्वजनों में