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पारलौकिक सुख की प्राप्ति के साथ-साथ इहलौकिक सुख की भी प्राप्ति होती है ।
कुछ लोगों का कहना है कि बिना कपट किये व्यापार नहीं चल सकता, किन्तु उनका यह कहना बिल्कुल झूठ है। सच्चे व्यापारी की दुकान प्रारम्भिक अवस्था में भले ही कुछ कम चले, परन्तु उसकी सत्यता प्रकट होते ही सभी लोग दूर-दूर से उसका नाम पूछते हुये बे-रोक-टोक उसकी दुकान पर पहुँच जाया करते हैं । परन्तु जो व्यापारी इसके विपरीत बेईमानी करने लगता है, उसकी पोल थोड़ ही दिनों में खुल जाती है और उसके बाद कोई उसके पास नहीं जाता । इस प्रकार धीरे-धीरे उसकी दुकान एकदम ठप्प हो जाती है, जबकि एक ईमानदार साधारण व्यापारी की दुकान दिन-रात बढ़ती रहती है और एक दिन वही छोटा-सा व्यापारी बहुत बड़ा प्रतिष्ठित आदमी बन जाता है।
मायाचारी से कमाया धन, मायाचारी से की तपस्या, सब व्यर्थ होती है । एक कहावत है 'जैसी करनी, वैसी भरनी।' तुम जैसा बोओगे, वैसा ही काटोगे |
एक वन में एक साधु तपस्या करता था । उसको देवों द्वारा स्वादिष्ट भोजन पहुँचाया जाता था । साधु भोजन करके अपनी तपस्या में लग जाता था । उसी वन में एक गड़रिया दूसरों की भेड़ें चराया करता था। वह प्रतिदिन देवों द्वारा आये साधु के लिये स्वादिष्ट भोजन को देखा करता था । एक दिन उसने विचार किया कि मैं भी यदि घरबार छोड़कर वन में साधु बनकर बैठ जाऊँ तो मुझे भी ऐसा स्वादिष्ट भोजन प्रतिदिन खाने को मिलेगा । मैं दिन-भर परिश्रम करक ज्वार - बाजरे की रोटियाँ खाकर पेट भरता हूँ । यह
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