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किन्तु बाद में वह अनेक चूहों को चट कर गई। जब सभी चूहे बिल में जा पहुँचे, तब उनमें स जो सबसे प्रधान चूहा था, वह नहीं मिला। उस प्रधान चूहे की पूंछ कटी हुई थी, अतः उसे न देखकर सभी चूहे परस्पर में शंका करने लगे कि इसमें कुछ कारण अवश्य है | अतः अपनी गणना करनी चाहिये | जब वे गिनने लगे, तो उसमें से बहुत से चूहे कम हो गये थे। उन चूहों ने समझ लिया कि यह सारी करामात इस छद्मवेषधारी बिल्ली की है। इसलिये वे चूहे बिल के मुख तक जाकर, परन्तु अपने शरीर को बिल में ही छिपाकर, यह श्लोक पढने लगे -
ब्रह्मचारिन्नमस्तुभ्यं कण्ठे कदारिकंकड़म् ।
सहस्त्रेषु शतन्नास्ति छिन्न पुच्छा न दृश्यते ।। कंठ में केदारि कंकड़ धारण करने वाले हे धूर्त ब्रह्मचारी! तुम्हारे लिये नमस्कार है | हमारे हजारों चूहों में से सैकड़ों को तूने नष्ट कर दिया और उसके साथ-साथ तूने कटी हुई पूँछ वाले मेरे नेता को भी समाप्त कर दिया। इस तरह बिल्ली का मायाचार जानकर चूहों ने उसका साथ सदा के लिय छोड़ दिया।
विश्वास के ऊपर ही सारे संसार का कार्य चल रहा है। विश्वास समाप्त हो जाने पर, आदमी चाहे कितना ही बड़ा क्यों न हो, पर उसकी कदर काई नहीं करता। कपटी मनुष्य किसी-न-किसी को फँसाने की चष्टा किया करता है, जिससे वह सदैव दुःखी रहता है
और तिर्यंच गति में जाकर अनेक प्रकार के दुःखों को भोगता है। इन दुःखों से बचने के लिये अपनी कुटिलता का त्याग करो | मन, वचन, काय पूर्वक कुटिलता का त्याग करना ही आर्जव धर्म है। इस आर्जव धर्म को धारण करने से कर्मों का क्षय हो जाता है और इससे
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