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यह हमारी धोखाधड़ी, यह हमारी मायाचारी, यह हमारा छल-कपट कब तक चलेगा?
लोक में कोई ऐसा पदार्थ नहीं, जिसका पाने के लिये छल-कपट करना चाहिये । सरल भाव में रहोगे, तो सदा आनन्द रहेगा और भविष्य भी अच्छा रहेगा । छल-कपट न करना, इस सरलता में मनुष्य कितना प्रसन्न रहते हैं ? जबकि मायावी पुरुष सदा आकुलित रहते हैं । और वे एक माया को छुपाने के लिये अनेक मायाचार करते हैं । मायाचारी मनुष्य अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिये अधम-से-अधम कार्य करने के लिये भी तैयार हो जाता है ।
किसी जंगल में एक आदमी भटक गया, रास्ता भूल गया। वह भाग रहा है । सुबह से शाम हो गई, लेकिन रास्ता नहीं मिला । आदमी की दौड़ बड़ी अंधी होती है । वह भागता है लेकिन पहुँचता कहीं नहीं है। इतना ध्यान रखना, भागने से कुछ नहीं मिलेगा । कितना भी भागो, लेकिन भागकर जाओगे कहाँ ? भागने से आदमी नहीं पहुँचता, बल्कि ठहरने आदमी पहुँचता है | ठहरने का अर्थ यही है कि वह पहुँच गया, अब कहीं नहीं जाना । पसीने से लथपथ घबराया हुआ वह आदमी भाग रहा है, क्योंकि उस आदमी के पीछे शेर लगा हुआ है । भागते-भागते वह एक पेड़ के नीचे पहुँचता है और देखता है उस पेड़ पर एक बंदर बैठा है। बंदर आदमी की भाषा समझता है। उस आदमी ने आवाज लगाई कि मेरी रक्षा करो, मुझे बचा लो, शेर मेरे पीछे लगा हुआ है, वो मुझे खा जायेगा, मुझ पर दया करो ।
आज आदमी एक जानवर से सहायता माँग रहा है। आदमी भी कितना मूर्ख है कि वह अपना भविष्य जानवर से पूछता है। सड़क के
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