________________
नहीं तो अज्ञानी रह जाओगे और अज्ञानियों की कोई पूछ नहीं होती ।
जब बच्चे छोटे होते हैं, माता-पिता पढ़ने को कहते हैं, तब वह यह समझते हैं कि यह अपने लिये पढ़ा रहे हैं, इसलिये वह स्कूल नहीं जाते। एक राजपुरोहित के चार लड़के थे । वे स्कूल नहीं जाते थे । जाते भी थे तो रास्ते में खेलने लग जाते थे । थोड़े बड़े हुए तो किताबों के पैसे लिये, फीस के पैसे लिये और कहाँ जा रहे हैं? पिक्चर हाल में। एक दिन पिता का स्वर्गवास हो गया । पिता राज्य पुरोहित था, राजा ने सोचा उसी ब्राह्मण के पुत्रों में से किसी को राज्य पुरोहित का पद दे दिया जाय। चारों लड़कों ने मीटिंग की कि भइया, राजपुरोहित बनना है, अपन तो कुछ जानते नहीं । तब बड़ा लड़का बोला कि मैं तो जानता हूँ । एक बार पिता जी के साथ गया था, ज्यादा तो याद नहीं रहा है, "ओम् नमो स्वाहा " ऐसा मुझे याद है, तो इण्टरव्यू में पहला नम्बर मेरा आयेगा । दूसरा बोला - जब तुम बोलोगे "ओम् नमो स्वाहा " तब मैं कहूँगा, जो तुमने कही, वो ही स्वाहा। तीसरे ने कहा- तुम दोनों का नम्बर नहीं, इण्टरव्यू में पहला नम्बर मेरा आयेगा, राजपुरोहित की पगड़ी मेरे सिर पर बंधेगी । दोनों बोले- भाई तुम क्या कहोगे ? वह बोला- बड़े भइया कहेंगे ओम् नमो स्वाहा, तुम कहोगे जो इनने कही, वो ही स्वाहा और मैं कहूँगा कि ऐसी कब लों चलेगी स्वाहा । और तब चौथा बोला- आप तीनों फैल होंगे, इण्टरव्यू मे पहला नम्बर मेरा आने वाला है । राजपुरोहित मैं बनूँगा । वे तीनों बोले- भाई ! तुम क्या कहोगे? कैसे राज्य पुरोहित का सेहरा तुम्हारे सिर पर बँधेगा? वह बोला - जब तुम लोग अपनी-अपनी बात कहोगे, तो मैं धीरे से कहूँगा कि जब लौं चलेगी तब लौं ही स्वाहा । यहाँ बात हँसने की नहीं, जरा समझने की है ।
212