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हमारी विश्वासनीयता धीरे-धीरे करके नष्ट हो जाती है। बच्चों की कहानी में आता है -
एक आदमी हमेशा दूसरों को तंग करने के लिये खेत में से आवाज देता कि बचाओ-बचाओ, मुझे बचाओ, भेड़िया आ गया, मरी भड़ों को ले गया। आस-पास क सब लोग आकर इकट्ठे हो जाते, तो वह हँसन लगता कि अच्छा बुद्धू बनाया, भेड़िया नहीं आया। जब एक दिन सच में ही भेड़िया आ गया, तो कोई मदद करने नहीं आया।
यह बहुत सीधी-सी चीज है कि हम दूसरों के साथ छल-कपट करेंगे, धोखा देंग और इसम आनन्द मानेंगे, तो हमारी विश्वसनीयता और प्रामाणिकता दोनो ही धीरे-धीरे खत्म हो जायेंगीं।
माया कषाय का वर्णन करते हुये आचार्य शुभचन्द्र महाराज ने लिखा है
जन्मभूमिर विद्यानाम कीर्तेर्वा स मंदिर, पापपंक महाग? निकृतिः कीर्तिता बुधैः | अर्गले वाप वर्गस्य पदवी श्वभ्र वेश्मनः
शीलशालि वने वह्निर्माये वैभव गम्यताम् ।। मायाचारी को इस प्रकार जानो-वह समस्त अविद्याओं की जन्मभूमि है, अपयश का निवास स्थान है, पापरूप कीचड़ का महान गड्ढा है, मुक्तिद्वार की अर्गला है, शीलरूपी शालिबन को जलाने क लिये अग्नि के समान है। ऐसी मायाचारी से सदा दूर रहना चाहिये ।
मायाचारी ज्यादा समय तक नहीं चलती। एक पिता अपने लड़कों से कहता था कि भाई, तुम लोग पढ़ा करा । यदि पढ़ोगे-लिखोगे
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