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सिर काटकर दिखाया था, तब विभीषण ने तत्काल ही राम को सचत किया था कि वे रावण की मायाचारी का विश्वास न करें। यह सीता का सिर नहीं है, यह रावण की मायाचारी है। अपनी छलविद्या से वह कपट कर रहा है। वह इस विद्या में अत्यन्त कुशल है। विभीषण ने रावण की मायाचारी का पर्दाफाश कर दिया था। उसने युद्धभूमि में राम को साहस बंधाया था। रावण की मायाचारी के कारण ही उसका पतन हुआ था।
मायाचारी पुरुष बिल्ली के समान हाता है। अत्यन्त कृतघ्न बिल्ली जिस मालिक का दूध पीती है, उसी मालिक की आँखें फूटने की माला जपती है | जब वह दूध पीती है, तब आँखें बंद कर लती है और मन में सोचती है कि मुझे काई नहीं देख रहा, पर जब पीछे से डंडा पड़ता है, तब समझ में आता है।
ठीक इसी प्रकार मायावी पुरुष भी नित्य सोचता रहता है कि उसकी मायाचारी को कोई नहीं देख रहा है। परन्तु जब कर्मों की मार का डंडा उसे पड़ता है, तब वह अत्यंत दुःखी हो जाता है।
हमारा मन अनादिकाल से अत्यन्त टेड़ा है, वचन एवं काय भी टेड़े हैं। हम जो कहते हैं, उसे करते नहीं हैं। प्रसिद्ध साहित्यकार यशपाल जैन ने बहुत अच्छ तरीके से उदाहरण प्रस्तुत किया है। उन्होंने लिखा है
एक बालक स्कूल गया । तो स्कूल में पहले दिन उस पाठ पढ़ाया गया कि सदा सत्य बोलना चाहिये | बच्चा घर आया। शाम को मकान मालिक किराया वसूलने के लिये आया और बोला कि पिता जी कहाँ हैं? बेटा अन्दर आया, पिता जी ने कहा – जाओ, कह दो बाहर गये हैं। बेटे ने आकर कहा – पिताजी बाहर गये हैं। दूसरे
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