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मसालों में मिलावट कर ली? कहा-कर ली। तो चला अब महाराज जी के प्रवचन सुन आयें, प्रवचन का समय हो गया है। ऐसे आदमी महाराज के प्रवचन में भी मिलावट कर डालेंगे। हम लोग क्या सुन रहे हैं और क्या गुन रहे हैं? हमें अपने मन से पूछन की जरूरत है | हम दोहरा जीवन जीने के अभ्यासी हो गये हैं। प्रत्येक बात का अर्थ हम अपने मन के अनुसार निकाल लेते हैं।
एक जगह महाभारत की कथा हुई। कथा के श्रोताओं में एक सेठ जी थे, वे बड़ी तल्लीनता से कथा सुन रहे थे। उनकी कथा सुनने की ललक को देखकर एक दिन कथावाचक ने पूछा-सेठ जी! आपने इस भागवत की परी कथा को सना है आपने क्या निष्कर्ष निकाला है? आपको क्या अच्छा लगा? सेठ जी बोले-इस पूरी कथा में मुझे दुर्योधन के चरित्र ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया है। श्री कृष्ण जी के कहने पर भी दुर्योधन ने 5 गाँव की जगह, सुई की नोक के बराबर भी जगह दने से इंकार कर दिया। अब मैंन तय किया है कि आज के बाद मैं भी किसी को कुछ भी नहीं दूंगा | कथावाचक ने अपना सिर पकड़ लिया। ऐसी कथा सुनने तथा सुनाने से क्या फायदा है? यह अपने जीवन के साथ छलावा और भुलावा है, और कुछ नहीं। दो प्रकार का धर्म होता है। एक बहिरंग धर्म और दूसरा अन्तरंग धर्म | हमारा जो बाह्य क्रिया आचार है, वह बहिरंग धर्म है। जो बाहर से देखने में आता है। और हमारे मन की, विचारों की जो पवित्रता है, वह अन्तरंग धर्म है। हमारे मन की सरलता ही वास्तविक अन्तरंग धर्म है | मायाचारी करना ही अधर्म है।
लंका क अत्यन्त शक्तिशाली राजा रावण ने मायाचारी से नकली साधु का वेष बनाकर सीता का हरण कर लिया था। रावण अत्यन्त मायाचारी था। युद्ध के अवसर पर भी उसने राम के समक्ष सीता का
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