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माया हो, सभी आत्मा का अहित करने वाली हाती हैं। हमें सदा इनसे बचने का प्रयास करना चाहिये |
जिसके विचार, कथनी व करनी में एकरूपता होती है, वह सदाचारी कहलाता है। इसी से जीवन ऊँचा उठता है। चार बहुत डरता है, यहाँ तक कि अपने पैरों की आवाज से, अपनी छाया से भी डरने लगता है, क्योंकि उसक सदाचार नहीं है। हमें मायाचार को छोड़कर, सदाचार को अपनाना चाहिये । ___ मन में कुछ, वचन में कुछ और क्रिया में कुछ, यही तो पतन व दुर्गति का कारण है। मन, वचन, काय के टेड़ेपन से अशुभ कर्मों का आस्रव होता है। मायाचारी से हम दूसरों को ठगने में सारा जीवन खो रहे हैं, पर ध्यान रखना हम दूसरों को नहीं, स्वयं अपनी आत्मा को ही ठग रहे हैं। अतः 'मुँह में राम और बगल में छुरी' की कुटिलता का छोड़ दो। हमारा जैसा पवित्र जीवन मन्दिर के अन्दर है, वैसा ही निश्छल, निष्कपट, सरल जीवन मन्दिर के बाहर भी होना चाहिए। मन्दिर के अन्दर का जीवन कुछ, और मन्दिर क बाहर का जीवन कुछ, यह मायाचारी है | मायाचारी व्यक्ति बाहर से कुछ होता है, और अन्दर कुछ और ही रहता है।
कौरवों की मायाचारी के कारण ही गीता का उपदेश देना पड़ा। दुष्ट कौरवों ने लक्षागृह बनाकर अपने ही भाइयों को जलाकर भस्म करने का मायाजाल रचाया था।
मायाचारी व्यक्ति दोहरा जीवन जीता है। वह मंदिर के अन्दर कुछ और होता है, और बाहर कुछ और होता है। ___ एक पिता ने अपन बेटे से कहा-क्यों बेटे | तेल में मिलावट कर ली? कहा-कर ली। दाल में मिलावट कर ली? कहा-कर ली।
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