________________
में उत्तम आर्जव
धर्म का तीसरा लक्षण है-उत्तम आर्जव। जैस मृदु शब्द से मार्दव बना है, उसी प्रकार ऋजु शब्द से आर्जव बनता है | ऋजोर्भावः कर्मवा आर्जवं । ऋजुता का भाव ही आर्जव है। जिसमें किसी प्रकार का छल नहीं, कपट नहीं, किसी प्रकार के धोखा देने की भावना नहीं, ऐसी जो आत्मा की शुद्ध परिणति है, उसका नाम आर्जव है। ऋजुता का अर्थ होता है सरलता ।
सरलता क मायने है-मन, वचन, काय की एकता। मन में जो विचार आया हा, उसे वचन स कहा जाय और जो वचन से कहा जाये, उसी के अनुसार काय से प्रवृत्ति की जाये | जब इन तीनों योगों की प्रवृत्ति में विषमता आ जाती है, तब माया कहलाने लगती है।
मायाचारी व्यक्ति का व्यवहार सहज एवं सरल नहीं होता। वह सोचता कुछ है, बोलता कुछ है, और करता कुछ है। उसके मन, वचन, काय में एक-रूपता नहीं होती। जिसके पास माया कषाय रहती है वह इस जीवन में और अगले जीवन में भी कांट क समान चुभती रहती है। मायावी व्यक्ति सुख-शान्ति का अनुभव नहीं कर सकता। इसी कारण यह माया शल्य भी कहलाती है। कषाय तो कषाय हाती है, चाहे वह क्रोध हो, चाह मान हा, चाहे
(187)