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दिन स्कूल में बच्चे को पढ़ाया गया सबसे प्रेम करना चाहिये । यह पाठ पढ़कर बेटा स्कूल से घर आया तो देखता है कि मम्मी-पापा आपस में झगड़ रहे हैं। तीसरे दिन उसे स्कूल में पढ़ाया गया - सब जीवों पर दया करो । घर लौटकर आया तो देखता है कि उसका बड़ा भाई एक अपंग भिखारी को पीट रहा है। चौथे दिन जब उस बच्चे से स्कूल जाने को कहा गया तो उस बच्चे ने कहा पिताजी मैं स्कूल नहीं जाऊँगा, क्योंकि गुरुजी ठीक नहीं पढ़ाते । वे जो पढ़ाते हैं, हम वह नहीं करते और जो हम करते हैं, वैसा वे पढ़ाते नहीं हैं ।
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हमारे वचनों में और क्रियाओं में कितना अन्तर है, इससे बड़ा व्यंग और क्या होगा । जीवन का यह दोहरापन ही हमारे जीवन की दुविधा का मूल कारण है ।
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एक दर्जी था। उसने रात में एक स्वप्न देखा कि वह मर गया । उसकी कब्र बनाई गई । कब्र में उसे दफनाया गया। कब्र पर बहुत सारी रंग-बिरंगी झंडियाँ गड़ी हुई थीं । वह सोचने लगा कि मेरी कब्र पर ये झंडियाँ क्यों गाड़ीं गईं। तभी एक फरिश्ता प्रकट हुआ । फरिश्ते से पूछा- भाई! ये झंडियाँ क्यों गाड़ी गईं हैं? फरिश्ता बोला- भाई! ये तुम्हारे जीवन की बेईमानी का हिसाब है । तुमने जितने लोगों के कपड़े चुराये हैं, जितने रंग के कपड़े चुराये हैं, उन सबकी झंडियाँ यहाँ गाड़ी हुई हैं। कयामत के दिन जब अल्ला आयेगा तो तुम्हारे एक-एक गुनाह का हिसाब माँगेगा ।
वह जागा तो घबड़ा गया। बोला- मुझे ऐसी बेईमानी नहीं करनी । आया और अपने नौकरों से कहा कि मैं कभी भी किसी कपड़े को काटने लगूँ तो कहना उस्ताद जी ! झंडी, ऐसा याद दिलाना । फिर
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