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दोनों की थाली में घास, भूसा परास दिया । वे विद्वान् आश्चर्यचकित हुय । 'राजन्! आपने हमारा सम्मान करने क लिये बुलाया था या तिरस्कार करने को?' राजा ने कहा-'इसमें मेरी क्या गलती है? आपने ही एक दूसरे का परिचय दे कर बैल एवं गधा बतलाया है। इसलिय हमने आप लोगों को उच्च क्वालिटी का घास-भूसा परोसा है। अब तो दोनों का माथा शर्म से झुक गया। जो भी अहंकार करता है, नियम से उसका पतन होता है। अहंकार में कभी भी परमात्मा की प्राप्ति संभव नहीं। अहंकार खोकर ही परमात्मा को पाया जा सकता है। जो भी इस मानकषाय को छोड़ दता है, उसको मुक्ति की प्राप्ति हो जाती है और जो अहंकार करता है, उसकी दुर्गति हाती है।
फूल न रास्ते में पड़ पत्थर का देखकर अहंकार से कहा-'देखा मेरा भाग्य और तेरा भाग्य? मेरे लिये सब चाहते हैं और तू रास्ते में पड़ा रहता है | तुझे सब लोग ठोकर ही मारते हैं।' पर समय पलटते देर नहीं लगती। कहते हैं घूरे के भी दिन बदलते हैं। एक बार एक शिल्पी न उस पत्थर को देखा और प्रसन्नता से उछल पड़ा। उसने पत्थर को उठा लिया और घर ले जाकर उसे तराशना शुरू कर दिया। तराश-तराश कर उसन उस पत्थर को एक प्रतिमा का रूप दे दिया और उसे एक वेदी पर विराजमान कर दिया। एक भक्त गया
और उसने उस इठलात फूल को तोड़कर प्रतिमा के चरणों में चढ़ा दिया | फूल ने जब पत्थर क इस रूप को देखा तो उसका मस्तक शर्म से झुक गया । मूर्ति ने बड़ी विनम्रता से कहा कि, बंधु! अहंकार करना व्यर्थ है। मेरा भाग्य जागा है और मैं पाषाण से भगवान बन गया और तू टूट करक आया और मेरे चरणों में चढ़ गया । तीन लोक के सामने हमारा यह परिचित स्थान एक अणु के
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