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बराबर भी नहीं है। फिर भी व्यक्ति इस थाड़े से वैभव का कितना अहंकार करते हैं। एक बड़ा जागीरदार अपने आफिस में बैठकर किसी संत को बड़े अभिमानपूर्वक अपनी जागीर का बखान कर रहा था | मेरे पास ये है, मेरे पास वो है | वहीं पर एक एटलस रखा था | संत ने उस एटलस को उतरवाया और कहा-बताओ, इसमें तुम कहाँ हो? वह बोला-मैं इंडिया में रहता हूँ | इंडिया में कहाँ रहत हो? बाला-मैं सागर में रहता हूँ, तुम कहाँ रहते हा? बोला-मैं कटरा में रहता हूँ | संत बोला-इस एटलस में बताओ कहाँ है तुम्हारा स्थान? विश्व क नक्शे में तुम कहाँ हो, तुम्हारा वैभव कहाँ है? जरा विचार करो। कुछ नहीं है। उसकी आँखें खुल गई कि मैं जो अहंकार कर रहा हूँ वह व्यर्थ का अहंकार है। ऊँट जब पहाड़ के नीचे आता है तब उसे अपने ऊँचे होने के अंहकार का पता चलता है। जब तक ऊँट पहाड़ के नीचे नहीं आता, तभी तक अहंकार करता है। यह उसके अज्ञान का अहंकार है।
जो मनुष्य संसार में अपने आपको सबसे बड़ा वैभवशाली या सबसे बड़ा बलवान् मान बैठता है, वह कूपमण्डूक के समान क्षुद्र दृष्टिवाला होता है। ___ एक बार समुद्र के किनारे रहनेवाला एक राजहंस उड़कर एक कुँए पर जा बैठा। राजहंस का भव्य आकार-प्रकार देखकर उस कुँए में रहने वाले एक मेंढक ने उससे पूछा कि, भाई! तुम कहाँ पर रहते हो? राजहंस ने उत्तर दिया कि मैं समुद्र क किनारे रहता हूँ। मेंढक न पूछा कि समुद्र कितना बड़ा है? राजहंस ने कहा कि बहुत बड़ा है |
तब मेंढक ने कुँए में अपने स्थान पर उछलकर उस कुँए में ही एक हाथ भर छलांग मारी और राजहंस से पूछा कि समुद्र इतना
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