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पता नहीं। सभी यश चंद ही वर्षों में मिट जाता है । अतः यश की वाँछा करना व्यर्थ है ।
यह जीव चाहता है कि मेरा नाम बहुत से पुरुषों में हो जाय । ठीक है, करले कोशिश । क्या ऐसा हो सकेगा कि सभी पुरुषों में उसका नाम हो जाये? कभी न होगा और इस थोड़ी-सी जगह के मनुष्यों में नाम होता है तो कुछ में नाम होता है, कुछ में बदनाम होता है, सबकी यह बात है । कोई यश गाता है तो कोई अपयश गाता है। यश और अपयश दोनों की परवाह मत कर । अज्ञानियों, मोहियों, मायाचारियों के बीच यश की चाह किस मतलब की । जो आत्महित के लिये मार्ग निर्णीत किया है अटल होकर उस मार्ग पर चल | मान लो कदाचित् बहुत से मनुष्यां में इज्जत नाम हो गया तो अब पशु पक्षियों में तो तेरा नाम नहीं चला। कदाचित् कल्पना कर लो कि सब मनुष्य मेरा नाम गाने लगे तो अभी ये गाय, भैंस, घोड़ा, गधा ये तो तेरा नाम नहीं गा रहे । इनमें भी नाम जमा ले तब तारीफ है । क्या ये जीव नहीं हैं? जैसे मनुष्य मायारूप हैं, इन्द्रजाल हैं, वास्तविक पदार्थ नहीं हैं, ऐसे ही ये भी हैं, उन मनुष्यों में नाम चाहते हो । इन गधा घोड़ों में भी नाम हो जाय तब तारीफ है, पर ऐसा कभी हो नहीं सकता। थोड़ी-सी अपनी गोष्ठी के अथवा स्वार्थी जनों में नाम की चाह करना ठीक नहीं है । यहाँ आज जो अच्छा कह रहा है कल वही बुरा भी कहने लगता है ।
रावण और विभीषण का बहुत बड़ा अगाध प्रेम था । जब विभीषण को किसी साधु से विदित हुआ कि मेरे भाई रावण की मृत्यु राजा दशरथ के पुत्र और राजा जनक की पुत्री के निमित्त से होगी, तो उसने अपने भाई के प्रेम में आकर मनमें यह निर्णय किया कि मैं
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