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यदि दूसरे के सम्मान में अपना अपमान महसूस करने का भाव है तो मान लो कि अहंकार है ।
अहंकार में आकर हम दूसरे के गुणों की अवहेलना कर देते हैं । आपने मुझसे दो बातें कहीं, दोनों बातें अच्छी थीं। लेकिन मैंने सोचा- अरे ! वाह, इनकी दोनो बातें अच्छी हो जायेंगी तो मेरी तो बेज्जती हो जायेगी, इसलिये हमने आपकी दोनों बातें नकार दीं। अब क्या हुआ ? इससे मेरे पास जो दो अच्छी बातें आ सकती थीं, वे नहीं आईं। अगर मैं थोड़ा विनम्र होकर इन दो बातों को स्वीकार कर लेता और कहता कि मेरे पास भी दो अच्छी बातें हैं, वे आप ले लीजियेगा, तो दोनों के पास चार-चार अच्छी बात हो जातीं। इस तरह हम एक दूसरे के गुणों को बढ़ाने में निमित्त बन सकते थे, अगर थोड़े से विनयवान् होते तो ।
यदि हम बाह्य वस्तुओं के कारण अपने आपको बड़ा मानते हैं तो यह अहंकार है । बाह्य वस्तुओं से अपने को बड़ा मानना, अपना बड़प्पन मानना, यह अपनी एक कमजोरी है । अपन ऐसा करते हैं कि नहीं करते? करते हैं । जब नई गाड़ी खरीदकर लाते हैं तो गाड़ी का सुख तब मिलता है जब लोग देखें, नहीं तो सुख नहीं मिलता। कोई गाड़ी नहीं देखे तो गाड़ी चलाने का जो आनन्द आना चाहिये, वह नहीं आता । बस कोई गाड़ी देख ले, तब आता है आनन्द | और कोई पूछ लेवे कि यह नया माडल कब लिया आपने? तब तो क्या कहना | तब तो बस यह लगता है कि सार्थक हो गया गाड़ी लेना । मान का मजा यही है कि सुख वस्तुओं में नहीं मिलता, सुख तो उसके प्रदर्शन में मिलता है ।
एक अम्माजी थीं । उन्होंने पान रखने का एक बढ़िया-सा पानदान
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