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वह है, जिसका आचरण श्रेष्ठ है। जिसका आचरण उच्च है, वही वास्तव में उच्च है | यदि हमारा आचरण उच्च नहीं है तो उच्च कुल में उत्पन्न होने का कोई महत्त्व नहीं है | कौआ यदि शिखर पर बैठ जाय तो वह उच्च नहीं बन जाता। वहाँ बैठकर भी वह काँव-काँव ही बोलेगा। जिस प्रकार शिखर पर बैठने से कौआ उच्च नहीं बन जाता, उसी प्रकार व्यक्ति कितने ही बड़े कुल में जन्म ले-ले, पर यदि उसका व्यक्तित्त्व श्रेष्ठ नहीं है, उसका आचरण अच्छा नहीं है, तो उस उच्च कुल का कोई महत्त्व नहीं है। यदि हमें उच्च कुल मिला है तो हम उस उच्च कुल का अभिमान न करें, बल्कि अपने कुल की गरिमा के अनुरूप अपने आचरण को पवित्र बनाने का प्रयास करें। जीवन में तो राज परिवर्तन होता है। 'जो आज एक अनाथ है, नरनाथ होता कल वही । जो आज उत्सव मग्न है, कल शोक से रोता वही।' एक अनाथ भी नरनाथ बन सकता है। एक पल में कुछ भी हो सकता है। यदि जरा-सा भूकम्प आ जाये तो जहाँ पहाड़ है, वहाँ खाई बन सकती है और जहाँ खाई है, वहाँ पहाड़ बन सकता है। यह कुल व जाति का अहंकार बिल्कुल व्यर्थ है। ____ अहंकार का विसर्जन कर देने पर छोटा व्यक्ति भी महान हो सकता है और जीवन में अहंकार आ जाये तो महान व्यक्ति भी छोटा बन सकता है। समन्तभद्र महाराज ने लिखा है -
श्वापि देवोऽपि देवः श्वा, जायते धर्म किल्विषात् ।
कापि नाम भवे दन्या, संपद धर्माच्छरीरिणाम् ।। अगर धर्म का आश्रय लेता है, तो कुत्ता देव बन जाता है और यदि अधर्म का आश्रय लेता है, तो देव भी कुत्ता बन जाता है। भोपाल शहर में एक झुग्गी/ झापड़ी में एक छोटी-सी लड़की
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