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पर ध्यान रखना, जब तक मार्दवधर्म का विरोधी यह मान विद्यमान है, तब तक जीवन में मृदुता नहीं आ सकती| यदि मार्दवधर्म को प्राप्त करना है तो यह मन जो मानकषाय का स्टोर बना हुआ है, पहले उसे खाली कर दो | यदि मानकषाय की हानि हो जाती है तो मार्दवधर्म प्रकट होने में देर नहीं लगती । पर आज तो मानकषाय की हानि होने पर कोर्ट में मान-हानि का दावा किया जाता है। कोई भी मान को छोड़ने को तैयार नहीं है |
शास्त्रों में 8 प्रकार के मद बताये गये हैं अर्थात् व्यक्ति आठ बातों को लेकर अपने को उच्च और दूसरों का तुच्छ समझने लगता है।
ज्ञानं पूजां कुलं जाति, बल ऋद्धि तपो वपुः ।
अष्टावाश्रित्व मानित्वं, स्मय माहुर्गतस्मयाः ।। व्यक्ति को ज्ञान का, पूजा का, कुल का, जाति का, बल का, ऋद्धि का, तप का, शरीर की सुंदरता का मद हो जाता है | इन आठ मदों को छोड़ने पर ही मृदुता आती है।
जिस जाति व कुल का हम मद करते हैं, वह शाश्वत नहीं है। बड़े-बड़े तीर्थ कर और चक्रवर्ती भी पूर्व में पशुओं की पर्याय में एकइन्द्रिय आदि पर्यायों में उत्पन्न हुय | आज हम जिस उच्च कुल का अभिमान कर रहे हैं, कल हमें भी नीच कुल में जन्म लेना पड़ सकता है। आज हम जिस उच्च कुल का अभिमान कर सबको तुच्छ मान रहे हैं, कल हमारा जीवन भी तुच्छ हो सकता है, और जिसे हम तुच्छ मान रहे हैं, वह सर्वोच्च स्थान पर आसीन हो सकता है | जैन धर्म तो यह कहता है कि एक निगोदिया जीव भी मनुष्य होकर उसी भव से मोक्ष प्राप्त कर सकता है |
इस कुल व जाति की उच्चता का कोई महत्त्व नहीं है। उच्च तो
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