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जो उसकी पड़ोसन का नाम था । पचास वर्ष पहले की याद पुनः हरी हो गई, मान उद्दीप्त हो गया। बेटे से बोली- बस, तू मेरा यह नाम ठीक करा दे और कुछ नहीं चाहिए मुझे । इस प्रकार व्यक्ति मरते-मरते भी मानकषाय को नहीं छोड़ पाता ।
अभिमानी कभी धर्म का पात्र नहीं होता। जैसे पाषाण में जल प्रवेश नहीं करता, वैसे ही सद्गुरुओं का उपदेश भी कठोर / मानी पुरुषों के हृदय में प्रवेश नहीं करता, वे संसार में ही ठोकरें खाते रहते हैं ।
फुटबाल को दुनिया ठोकर मारती है। पता है क्यों? फुटबाल के पेट में अंहकार की हवा भरी हुई है। जब तक यह हवा भरी रहती है, तब तक वह ठोकरें खाती है। ठोकरें खा-खाकर इधर-उधर उछलती है, कँदती है और दुनिया उसका तमाशा देखती है ।
आज के आदमी का भी लगभग यही हाल है। आदमी ठोकरें खा रहा है। कारण? आदमी, आदमी न रहा, वह फुटबाल हो गया । आदमी में भी अहंकार की हवा है, दंभ और गुमान की हवा है, पद और मद की हवा है। आदमी फुटबाल हो गया । झूठी शान-शौकत और शोहरत की हवा से फूला नहीं समा रहा ।
फुटबाल में जब तक हवा भरी रहती है, तब तक ठोकरें खाती है | हवा निकल जाये तो फिर उसे कोई नहीं छेड़ता । आदमी में से भी यदि अहंकार की हवा निकल जाये तो जिन्दगी के सारे दुःख-दर्द पीड़ायें और संघर्ष आज अभी और इसी वक्त खत्म हो जायें । जीवन और जगत में तमाम संघर्षों और तनावों की वजह आदमी का अहम् और वहम् है ।
आचार्यों ने जीवनविकास का मूलमंत्र बताते हुये कहा है- यदि
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