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दो-चार बाराती इकट्ठे होकर बैठ जाते, वहीं वे मित्र भी पहुँच जाते । इतने में बारात का एक प्रमुख व्यक्ति ठहाका मारते हुए कह रहा था - यारो ! कुछ भी कहो, सेठ ने शादी तो बहुत बढ़िया की, परन्तु सारे काम बनियाबुद्धि से हुए थे । सेठ ने प्रदर्शन तो इतना किया कि मोती बाँटे जा रहे हैं, किन्तु घड़ का मुँह इतना छोटा रखा, कि कोई पूरी मुट्ठी भरकर मोती निकाल ही न सके। मोती बाँटने का तो सिर्फ दिखावा ही किया था ।
सेठ के मित्र इस बात को सुनकर दंग रह गये। जब मित्र लौटकर सेठ के पास पहुँचे तो सेठ उनसे बहुतकुछ सुनने को उत्सुक था। मित्रों की बात सुनकर सेठ ने कहा- मित्रो ! दुनिया के लोग सिर्फ दोष ही निकाल सकते हैं, प्रशंसा नहीं करते। अच्छा होता मैं तुम्हारी बात मान लेता। आज से संकल्प करता हूँ कि यश पाने के लिये कोई भी कार्य नहीं करूँगा ।
यह संसार असार है, यहाँ मान करना मूढ़ता की बात है । मानकषाय करनेवाला घमंडी व्यक्ति अन्त में नष्ट हो जाता है। इस मनुष्यपर्याय में मानकषाय की मुख्यता होती है । व्यक्ति सब कुछ छोड़ सकता है, पर मान को छोड़ना अत्यन्त दुर्लभ है । व्यक्ति मरते समय तक भी मानकषाय को नहीं छोड़ पाता ।
माँगीबाई नाम की एक बुढ़िया थी। जब वह मरने के समीप हुई तो उसके लड़कों ने कहा कि कोई आखिरी इच्छा हो तो बताओ । बुढ़िया ने कहा- मुझे मन्दिर ले चलो, बस और कुछ नहीं चाहिए । वे बुढ़िया को मन्दिर ले गये । वह खिसक - खिसक कर मन्दिर पहुँच गई। उसने लौटते वक्त देखा कि सीढ़ी पर जो उसका नाम लिखा था वह मिट गया है । माँगीबाई के स्थान पर मानीबाई हो गया है,
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