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बैठाया। सबसे नम्र निवेदन करते हुये कहा-आदरणीय महानुभावो! आपके आगत-स्वागत और खातिरदारी में काई त्रुटि रह गई हो तो मैं आप सबसे हाथ जोड़कर क्षमायाचना करना चाहता हूँ | मुझे इस बात का अफसास है कि हम जितना चाहते थे उतनी आपकी सेवा नहीं कर सके। ___ अंत में सेठ ने कहा - आज आप यहाँ से प्रस्थान कर रहे हैं। अतः जाते-जाते सभी से मरा सविनय निवेदन है कि इस सभागृह के बाहर दोनों ओर घड़े रखे हैं, जो सच्चे मोंतियों से भरे हुए हैं, जिसकी जितनी मर्जी हो उतना वह उपहार के रूप में अवश्य लेकर जाएँ।
सारे बाराती यह कथन सुनकर दंग रह गये | मन-ही-मन सेठ की सराहना करने लगे-क्या दरियादिल आदमी है ये? कुछ व्यक्ति सोचने लगे, ऐसी शादी तो हमने न कहीं देखी है और न सुनी है कि आनेवाले बारातियों का सच्चे मोती मुक्त हाथों से बाँट जाएँ | सब ने मनमर्जी के मुताबिक अपनी जेब भर ली और बिदा हो गई।
सब के जाने के बाद सेठ ने अपने अंतरंग मित्रों का बुलाकर कहा कि तुम्हें उन बारातियों के पीछ-पीछे जाना है | रास्ते में इनकी भोजन व्यवस्था का पूरा ध्यान रखना और अपने कानों को भी सतर्क रखना । क्योंकि आत हुए बाराती कुछ नहीं बोलते, परन्तु जाते हुये बाराती बहुत कुछ बोलत हैं। अतः तुम कान खोलकर उनकी बातें सुनना। इस तरह सेठ ने अपने मित्रों को बारातियों की प्रतिक्रिया जानने क लिए भेजा ताकि पता लगे कि लोग सेठ के बारे में क्या-क्या कहते हैं।
सेठ के कहे अनुसार मित्र पूरा ध्यान रख रहे थे । जहाँ भी