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करते हुए कहा मित्र ! इस दुनिया में किसी को भी यश नहीं मिलता । तुम चाहे कितने भी अच्छे से अच्छा कार्य करो, किन्तु ये दुनिया किसी को यश नहीं देती। दुनिया की तो ये रीति है कि अच्छे-से-अच्छे कार्य में भी लोग त्रुटियाँ निकाल ही लेते हैं ।
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यह सुनकर सेठ ने झल्लाकर कहा दुनिया त्रुटियाँ तो तब निकालेगी जब मैं किसी कार्य में कुछ कमी रखूँगा । जब शादी के आयोजन में कोई कमी रहेगी ही नहीं, तो दुनिया दोष भी कैसे निकालेगी? उस अनुभवी मित्र ने अंत में भी यही कहा मित्र! याद रखना कि आदमी की प्रकृति कुछ ऐसी ही है जो दोष देखना ही जानती है ।
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सेठ ने शादी की तैयारियाँ छह महीने पूर्व ही प्रारंभ कर दीं । मन में यश की आकांक्षा को लेकर सेठ ने शादी की रूपरेखा खूब सोच-विचारकर तय कर ली। उसने सोचा, आनेवाले सभी बारातियों की खातिरदारी इस तरह करूँगा कि प्रत्येक बाराती स्वयं को धन्यभागी समझेगा । विवाह की प्रशंसा ऐसी होगी कि जो विवाह में नहीं आयेंगे वे अपने को दुर्भाग्यशाली महसूस करेंगे । समय पर बारात आई। सेठ ने पहले से ही आगत स्वागत की ऐसी तैयारियाँ कर रखी थीं कि सारे बाराती देखकर दंग रह गए। फिर उनक खान-पान, आमोद-प्रमोद, हास्य विलास और सुख सुविधाओं के समस्त साधन प्रचुर मात्रा में जुटाये हुए थे । एक - एक बाराती को इतना प्रेम, आदर और आग्रहपूर्वक सम्मान दिया जा रहा था कि सभी मन-ही-मन सेठ की प्रशंसा कर रहे थे ।
विवाहकार्य ठाठ-बाट से सम्पन्न हुआ | जब बेटी के विदा होने का समय आया तो सेठ ने समस्त बारातियों का एक बड़े सभागृह में
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