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जीवन में उच्च स्थान प्राप्त करना चाहते हो तो झुकने की कला सीखो। रावण जो अभिमानी था, वह नष्ट हो गया और विभीषण जो विनम्र था, वह लंका का राजा बन गया । राम को भी लंका पर विजय विनम्र हृदय के कारण मिली थी, जिस विनम्रता से उन्होंने विभीषण को गले लगाया था ।
संसार में प्रत्येक प्राणी मुक्ति चाहता है । पर मुक्ति अंहकार के रथ पर आरूढ़ होकर नहीं मिल सकती । इसके लिये तो विनम्र होकर सच्चे वीतरागी गुरु की शरण में जाना होगा । भगवान महावीर स्वामी ने अपनी देशना में कहा- भव्य प्राणियो! संसार के कष्टों से यदि मुक्ति चाहते हो, तो मुक्ति के सोपान 'विनय' अर्थात् उत्तम मार्दवधर्म को स्वीकार करो । विनय से जीवन पवित्र व उन्नतिशील बनता है, जबकि अहंकार से पतन होता है । अहंकार किसी का नहीं टिकता । अहंकार कच्चे घड़ के समान होता है, वो कब टूट जाये, कहा नहीं जा सकता । अहंकार इन्द्रधनुष के समान है कब मिट जाये कहा नहीं जा सकता । इतिहास साक्षी है कि जिसने भी अहंकार किया, उसका निश्चित रूप से पतन हुआ, चाहे वह रावण हो या कंस या दुर्योधन ।
मान एक मीठा जहर है, जो मिलने पर अच्छा लगता है, पर है बहुत दुःखदायक | मान एक कषाय है। यह जिसके पास भी आ जाती है, उस पर अपना प्रभाव अवश्य डालती है। चाहे वह श्रावक हो या मुनि । यदि यह मुनियों के पास भी आ जाती है तो उनको भी मार्दवगुण से वंचित करा देती है । मान-सम्मान की आकाँक्षा पूरी न होने पर उन्हें भी क्रोध आ जाता है । जो पतन का कारण बनता है ।
द्वीपायन मुनिराज पर जब यादव राजकुमारों ने पत्थर फेके, उन्हें गालियाँ दीं, तो उन्हें भी क्रोध आ गया । मन में पर्यायबुद्धि जागृत हो
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