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एक और उपाय है-थोड़ा-सा अपने भीतर प्रेम विकसित करना सीख लें | अपने मन में सबके प्रति थोड़ा-सा प्यार आ जाये, क्योंकि प्रेम करने वाला क्रोध नहीं कर सकता। जिसने समता की साधना की है, ऐसा साधु कभी भी अपने क्षमाभाव को नहीं छोड़ता।
एक साधु जी नाव स यात्रा कर रहे थे | उसी नाव में बहुत सारे युवक भी यात्रा कर रहे थे। वे युवक साधु जी को तंग करने लगे-बाबाजी! आपका ता अच्छा बढ़िया खाना-पीना मिलता होगा, आपके तो ठाठ होंगे? इस तरह खूब तंग करत रहे | पर साधुजी चुप थे। वे तंग करते-करते गाली-गलौच पर आ गये | यहाँ तक कि एक यवक ने अपना जता साधजी के पैर पर चढाने की कोशिश की। इतने में नाव डगमगाई और एक आकाशवाणी हुई कि, बाबाजी! अगर आप कहें तो हम नाव को पलट दें? सब डूब जायेंगे, लेकिन आप बच जायेंगे, हम आपको बचा लंगे | साधुजी क मन में बड़ी शांति थी, या कि उनका समता का अभ्यास था। साधुता यही है कि विपरीत परिस्थिति में, विषमताओं के बीच भी मेरी समता, मरी अपनी क्षमा न गड़बड़ाये ।
ऐसा है, तब तो साधुता है। नहीं तो साधु का वेश भर है। ऐसी आकाशवाणी सुनकर मालूम है, हम और आप होते तो क्या कहते? कहते-पलट दा | पर वे साधुजी सचमुच साधु थे, शांत रहे और बोले-अगर आप सचमुच पलटना चाहते हैं, ता नाव मत पलटो, इन युवाओं की बुद्धि पलट दो। यदि हम समता की साधना करें तो हमारे भाव भी पवित्र हो सकते हैं | उस समय जबकि कोई हमार सामने क्राध कर रहा हा तब मैं भावना भाऊँ कि इस व्यक्ति का क्रोध शांत हो जाय, इसका अच्छा हो जाय।
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