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अखाड़ा ! क्या मतलब?
- सुनो, तुम्हारा मन है लड़ने का । वहाँ तुम्हारा जोड़ीदार मिला दूँगा, क्योंकि मैं तो हूँ कमजोर ।
अब जो गुस्सा कर रहा था उसका सारा गुस्सा ठंडा हो गया और चेहरे पर मुस्कराहट आ गयी। बस, फिर क्या था, बोले- 'हो गया बाय का कुआँ, अपन यहीं बैठें और चाय पियें।' ये क्या चीज है ? ये है कि सामने वाले ने ईंधन डाला, चिनगारी भी लगाई, पर आप निरन्तर सावधान हैं पानी डालने के लिये । ऐसी तैयारी होनी चाहिये । इस प्रकार हम भी वातावरण को हल्का बनाकर क्रोध के मौकों पर क्रोध करने से बच सकते हैं ।
चौथा उपाय थोड़ा कठिन है, अगर ये सब न बने । सकारात्मक सोच का परिणाम भी नकारात्मक आ रहा हो, तुरन्त कुछ उपाय भी नहीं सूझ रहा हो, वहाँ बहस करके ही शांति होगी, गुस्सा करके ही जी ठंडा होगा, चार बातें कहकर ही मन को शांति मिलनेवाली हो, तब मेरा काम इतना ही है कि मैं चुप रहूँगा। मैं चार बातें नहीं कहूँगा | भीतर-भीतर मन मसोसकर रह जाऊँगा, लेकिन बात बिगड़ने नहीं दूँगा | क्योंकि चार बातें मैं भी कहूँगा तो बात आगे बढ़ जायेगी, बिगड़ जायेगी, फिर बात को सम्हालने में बहुत दिक्कत होगी। अभी अपने को जरा सम्हाल लूँ । चुप रह जाँऊ तो बाहर की बात अपने आप सम्हल जायेगी, और भीतर की थोड़ी देर बाद सम्हल जायेगी । किसी भी कषाय का तीव्र उदय अड़तालीस मिनट से अधिक नहीं रहता । उसके बाद उसमें कमी आयेगी ही। फिर मैं अपने को सम्हाल लूँगा । अभी क्रोध का आवेग है, इस आवेग में मैं जरा-सा मौन धारण कर लूँ - ये उपाय हैं क्रोध से बचने के |
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