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हम सोचते जरूर हैं कि जरा-सा ही तो गुस्सा किया है, अभी संभाल लूँगा, लेकिन यदि हमने सावधानी नहीं रखी तो वह बढ़ता ही चला जायेगा और हमारे जीवन को तहस-नहस कर देगा। हमारा प्रयास होना चाहिये कि हम इसे कैस हल्का करें ।
हाँ, तो वह व्यक्ति आता है। सुबह का इतना बढ़िया समय है, चाय का समय है और वह गालियाँ दना शुरू कर देता है। पूजन में लिखा तो है रोज पढ़ते भी हैं कि 'गाली सुन मन खेद न आनो ।' हाँ, पूरी याद भी है। याद करने से नहीं होगा कुछ, दोहरा लेने से भी नहीं होगा कुछ। जिस समय ऐसी परिस्थिति आये, उस समय हम इसका उपयोग कर लें- इसक लिये है य, पूजा। पूजा तो अभ्यास है। हम अभ्यास कर रहे हैं ये ताकि बाहर जब मैदान में उतरें तो ठीक से व्यवहार कर सकें। लेकिन हम वहाँ चूक जाते हैं |
वह आगन्तुक व्यक्ति गालियाँ दे रहा है, और ये सामने बैठे मुस्कराय चले जा रहे हैं। जब कोई गाली दे और सामनवाला मुस्कराता रहे तो और तेजी से गुस्सा बढ़ता है। अब उन्होंने मुस्कराना बंद कर दिया, फिर धीर से कहा-सुनो, तुम्हारी बात अगर पूरी हो गई हा तो .........| देखिये मजा। सामने वाला गाली देनेवाले से कह रहा है-यदि तुम्हारी बात पूरी हो गई हो तो जरा हमारी बात सुनो । उठो, चला, जरा बाहर तक घूम कर आयें | उसने कहा-क्या मतलब?
- मतलब क्या, थोड़ा घूमकर आते हैं। बाहर बाय के कुआँ तक।
- वहाँ पर क्या है? - वहाँ पर अखाड़ा है- अखाड़ा ।
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