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इतना सुनते ही पारा और भी गर्म, मुझे समझाती है । किसने कहा ये सब ?
कुछ नहीं, आज हम महाराज के पास गये थे । हमने उनसे कहा T था, उन्होंने ही यह उपाय बताया था ।
बस, इतना सुनना पर्याप्त था । घड़ों पानी पड़ गया मानों उनके ऊपर। शान्त हो गये। हाँ, बात तो सही ही कही है । क्यों मैं व्यर्थ क्रोध करता हूँ ? और उस दिन से सब ठीक है ।
हम भी ध्यान रखें । ऐसी परिस्थति निर्मित हो जावे तो उस समय तुरन्त बँधे - बँधाय उत्तर नहीं, समाधान खोजें? ऐसी परिस्थति आ जाने पर जल्दी से समाधान खोजें- ये क्रोध से बचने का तीसरा उपाय है।
प्रभाकर जी के पिता जी का ही एक संस्मरण है- उनके पास सुबह - सुबह एक व्यक्ति आता है, जब चाय का समय होता है उस समय। बड़ा अच्छा समय होता है वह । सुबह किसी का ज्यादा गुस्सा आता भी नहीं है । द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव देखकर ही कषाय आती है । थोड़ा कमजोर शरीर वाला हो तो चिड़चिड़ा व क्रोधी होने की संभावना ज्यादा होती है । यह द्रव्य की अपेक्षा से है। क्षेत्र की दृष्टि से अच्छा स्थान हो तो भी कषाय की संभावना कम होती है । काल की अपेक्षा सुबह का समय हो तो गुस्सा कम आयेगा । शाम को थके-हारे होंगे तो गुस्सा जल्दी आयेगा । भाव की अपेक्षा भाव यदि नकारात्मक हों तो वातावरण को और अधिक तनावयुक्त बना देगा | यदि क्रोध को हल्का बनाने का भाव नहीं है तो वह बढ़ता ही चला जायेगा । क्रोध जरा-सी ताकत / शक्ति से शुरू होता है और बढ़ते-बढ़ते आग लग जाती है, फिर तो आपे से बाहर हो जाता है ।
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